पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/११

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कहा कि ईश्वर ने तुमको पुत्ररत्न दिया है वह चिरायु रहे, थोड़े ही समय के पश्चात तुम्हारी सब आपत्ति रात्रि के समान व्यतीत हो जायेगी। तुम यहां ही रहो और जितना तुमसे बन सके घर का भार संभालो। इस प्रकार के प्रेमयुक्त वचनों को सुनकर मल्हारराव की माता का चित्त ठिकाने हुआ और वे कर्तव्य से प्रेरित हो समय समय पर भाई के कार्य में उनका हाथ बटाने लगीं । मल्हारराव जो उस समय नितांत बच्चे ही थे, सिवाय खेल कूद के और क्या समझ सकते थे? परतु कभी कभी अपने साथ के बालकों से अनबन हो जाती अथवा खेल से मन ऊब जाता तो वे अपनी माता और मामा के साथ खेत तक भी चक्कर लगा दिया करते थे।

एक दिन प्रातःकाल मल्हारराव अपने मामा के साथ खेत को चले गए और इधर उधर कूद फाँद, मिट्टी के ढेले, पत्थर आदि फेंकने से और कड़ी धूप के लगने से व्याकुल हो गए और एक घने छायादार वृक्ष के नीचे आक़र लेट रहे । मंद और शीतल वायु के लगने से वे कुछ समय पश्चात निद्रादेवी की गोद में सुख से सो गए। जब भोजराज ने अपने कार्य से छुट्टी पाई तब मल्हारराव को इधर उधर देखा, ढूंढा, पुकारा परंतु उसको कहीं न देख यह निश्चय कर लिया कि वह घर चला गया होगा। परंतु घर पहुँचने पर उसको अपने भाई के साथ में न देख बहिन ने पूछा कि मल्हारी क्यों नहीं आया? तब भोजराज ने सरल स्वभाव से यह उत्तर दिया कि वह खेत ही में रह गया है । मैंने उसको ढूंढा, पुकारा परंतु उत्तर न