पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१०९

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की ऐतिहासिक स्त्रियों के समान अहिल्याबाई में भी अद्वितीय और उत्तम गुण विद्यमान थे । वे अपना अमिट नाम इंदौर, हिमालय, सेतुबंध, रामेश्वर, गया, बनारस आदि स्थानों में अद्भुत विशाल और अद्वितीय देवस्थान बनवा कर छोड़ गई हैं । नाथ मंदिर और गयाजी के देवालय (जो कि विष्णुपद के नाम से प्रख्यात है,) का काम इतना सुंदर और रमणीय है कि देखने मात्र से पलक मारने को जी नहीं चाहता । यहाँ पर श्री रामचंद्र और जानकी जी की सुंदर मूर्तियाँ विराजमान हैं । सामने सच्ची भक्त अहिल्याबाई की मूर्ति खडी़ है । इनकी मूर्ति के अवलोकन मात्र से यह प्रतीत होता है कि साक्षात् बाई भगवान का पूजन ही कर रही हैं । यह आज दिन भी गयाजी में विद्यमान है । इस छवि के देखने से हिंदू तीर्थयात्रियों के अंतःकरण में भक्ति और पूज्य भाव एकाएक उत्पन्न हो जाते हैं ।

धीरज धर्म मित्र अरु नारी । आपति काल परखिये चारी ।

श्रीयुत गोस्वामी तुलसीदास जी के कथन के अनुसार अत्यंत दुःख और कष्ट के रहते भी अहिल्याबाई अपने धर्म कर्म पर सदा आरूढ़ रहा करती थीं । इसके संबंध में बहुत से लेख महेश्वर दरबार के पत्रों में उपलब्ध हुए हैं, जिनमें से कुछ यहाँ उद्धृत किए जाते हैं ।
( १ ) " मातुश्री अहिल्याबाई को शीत उपद्रव होने के कारण वे पाँच सात दिन अधिक संतप्त रहीं, अब प्रकृति कुछ अच्छी है । यद्यपि वे बाहर नहीं निकलती हैं तथापि वर्ष नवमी व्यतिपात का स्नान कर उन्होंने दान धर्म किया और