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गांधीजी - । जाय कि हिटलर भिन्न-राज्योंपर विजय हासिल कर ले, तो भी वह ब्रिटेन और फ्रांसको हर्गिज गुलाम नहीं बना सकेगा। उसका अर्थ है दूसरी लड़ाई। और अगर मित्र-राज्य जीत जाय, तो भी दुनियांकी बेहतरी नहीं होगी। लड़ाईमें अहिंसाका सबक सीखे बिना और अहिंसाके जरिये जो फायदा उठाया है, उसे छोड़े बगर वह अधिक शिधर भले ही हों, पर कुछ कम बेरहम नहीं होंगे। चारों ओर, जिन्दगीके हर पहलू में न्याय हो, यह हिंसाको पहली शर्त है। मनुष्यसे इतनी अपेक्षा करना शायद अधिक समझा जाय, लेकिन मैं ऐसा नहीं समझता। मनुष्य कहाँसक ऊँचा जा सकता है और कहाँतक गिर सकता है, इसका निर्णय हम नहीं कर सकते, पश्चिमके इन मुल्कोंको हिन्दुस्तानको अहिंसामे कोई सहायता नहीं पहुं- थायी है। इसका कारण यह है कि यह हिंसा अभी खुद बहुत कमजोर है। उसकी अपूर्णता देखनेके लिए हम उतने बूर क्यों माय ? काँग्नेसको अहिंसाको नीतिके बावजूद हम अपने वेशम एक दूसरेके साथ लड़ रहे है। सुव कांग्रेस पर भी विश्वास किया जा रहा है। जबतक काँग्रेस या उसके जैसा कोई और गिरोह सब लोगोंकी अहिंसा पेश न करे, दुनियामें इसका संधार हो नहीं सकता। स्पेन और चीनको जो मवर हिन्दुस्तानने वी, यह केवल नैतिक थी। माली सहायता तो उसका एक छोटा-सा रूप था। इन दोनों मुल्कों के लिए जो अपनी आजादी रातों-रात सो बैठे, शायद ही कोई हिन्दुस्तानी हो जिसे उतनी ही हमवर्षी न हो। यद्यपि स्पेन और चीनसे उनका मामला जुदा है, उसका नाश चीन और स्पेनके मुकाबले में वायद ज्यावा मुकन्मिल है। परअसल तो चीन और स्पेनके मामले में भी खास फर्क है। लेकिन महातक हम- वकिा सवाल है। उसमें कोई अन्तर नहीं आता है । बेचारे हिन्दुस्तान के पास इन मुल्कोंको भेजनेके लिए सिवाय अहिंसाके और कुछ नहीं है। लेकिन जैसा कि मैं कह चुका हूँ, यह अभी तक भेजने के लायक चीज नहीं हुई है। वह ऐसी तब होगी, जग हिन्धुस्ताम अहिंसाफे जरिये भाजावी हासिल कर लेगा। अब रहा मिटेन का मसला। कांग्रेसने उसे कोई परेशानी नहीं जाला है। मैं यह घोषित कर चुका हूँ कि कोई ऐसा काम नहीं करूंगा जिससे उसे कोई परेशानी हो । अंग्रेज परेशान होंगे, अगर हिन्दुस्ताममें अराजकता होगी। कांग्रेस, जबतक मेरी बात मानेगी तन- तक इसका समर्थन नहीं करेगी। कांग्रेस जो नहीं कर सकती वह यह है। वह अपना नैतिक प्रभाव ब्रिटेनके पक्ष में नहीं बाल सकती। नैतिक प्रभाष मशीनकी तरह कभी नहीं दिया जा सकता। उसे लेनान लेना ब्रिटेनके अपर निर्भर करता है। शायर मिटेनके राजनेता सोचते हैं कि ऐसा कोन नैतिक मल है जो कांग्रेस दे सकती है। उनको नैतिक बलको परकार ही नहीं। शायव वह यह भी सोचते हैं कि इस लड़ाई में फंसी हुई इस दुनिया में उन्हें किसी चीजकी जरूरत है तो वह माली सहायता है। अगर ऐसा वे सोचते हैं, तो ज्यादा गलती भी नहीं करते हैं। यह ठीक ही है, क्योंकि लड़ाई में नीति नाणामज होती है। यह कहकर कि जिवनका हुमय परिवर्तन करने में सफलताको संभावना नहीं है, लेसकने निदेनके पक्ष में सारा मामला हार दिया। मैं विटनको मुराई नहीं चाहता। मुझे