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दिल हिसागके सहयोगके बिता सिर्फ क्रियाएं आऑहसाका भांछयोष. परिणाम नहीं निकलता । हमारी अपूर्ण जहिसाफी सफरता आज सबके सामने है। हिन्दुओं और भुसलमामोंके बीच जो शगड़। चल रहा है,उसे देखिये दोनों एफ दुसरेसे लड़नेहे लिए कंशर कस रहे हैं। असहयोगके दिनोंमें जिस हिसाको विलोंमें आथय दे रखा था, आज यह हमपर हो

हायी हो गयी है । बह हहिसात्मक शक्ति, थो जनतामें पेदा हो चुकी थी, किन्तु एक उद्देश्यको पानेके प्रणत्वमें जिसे बाँध रक्‍खा था, आय खुल पड़ी है ओर हम उसका आपसमभें एक

इसरेफे खिलाफ इस्लेगालू कर रहे हैं । यही बात, भले ही कुछ कम उम्र रूपमें हो, कांग्रेसियोंके आपसी झगड़ोंमें और काँग्रेसी

सरकारोंके दशतकारी उन उपायोंमें देखी जा सकती है, जिन्हें ते अपने प्रान्तका शासनप्रभंध करनेके लिए लाचार होकर इस्तेगालमें ला रहे हैं। यह कहानी साफ बता रही है कि किस तरहु आजका सारा बाताधरण हिसासे पूर्ण हो गया है । मुझे यह भी आशा हैकि इससे यह भी साफ हो जागगा कि जबतक प्स

बातावरणकों ही बिलकुल बदल ने दिया जायगा, अहिसात्मक सार्यजमनिक आन्‍शेऊनका चलूणा

असंभव हूँ । चारों ओरसे होनेवाली घटनाओंकी जोरसे आँखें बन्द क्र फैना खुब आफत बुलाना है । मुझे यह सलाह दी गयी कि अगर में सार्वजनिक रात्याप्हकी घोषणा कर पूं तो सब अन्दरूती झगड़े खत्म हो जायेंगे । हिस्बु-मुसलूमान उावसी सतभेद दूर करके मिल

जायेंगे और कॉँग्रेसी आप ही ईर्ष्या-देष और अधिफारोंकी ऊूड़ाई भूछ जायेंगे । लेकिस स्थितिका सैरा अध्ययन बिलकुल विपरीत हैँ। यदि आज अहिसाके नामपर कोई सामूहिक आरदोलत घुरू कर विग्रा गया तो, बह स्वयं संगठित और कुछ हाजतोंमें संगठित हिंसामें परिणत

हो जायगा। इससे काँग्रेस बदनास हो जायगी, स्व॒राज्य-प्राप्तिके काँग्रेसके युद्धपर आफतका पहाड़ दूठ पड़ेगा और बहुतसे घए तबाह हो जायेंगे। यह भुमकित है थि। जो में खिन्र सींच रहा हूँ, मेरी अपनी दुर्बहताका परिणाम है और गह विल्‍ूकूल झूठा हो। अगर ऐसा है; तो जब्त में अपनी उस दुर्बहताको दुर ते दार हू, भें किसी ऐसे आग्वोलनफा नेतत्न

नहीं कर सकता जिसमें भहात्र वृढ़ संकल्प और शक्तिक्षी जरूरत हो लेकिन अगर में कोई शुद्ध प्रभावकारी अहिराताक उपायफी तलाश नहीं फरता, तो हिंसाका फूठ पड़ता भी निश्चित-सा है ।जनता अपनी इच्छाओं और

शक्तिकों प्रभट

करता चाहती है । उसे सिर्फ उस्त रचनातरक्त कार्ममें संतोष नहीं है, जो भैंगे बताग! है

और जिसे कॉग्रेसने सर्वेसस्ततिसे पास कर लिया है। जैसा कि में पहले भी कह चुका हूँ रचनात्मक कार्यक्रकी ओर होगोंका पूरा ध्यान न वेना ही इस बातका सबूत है कि

कॉग्रेसियोंने अहिसाकों केवल ब्राहुरी तौरते स्वीकार किया है, घहु उनके प्रिलफी चीज भहीं बनी । लेकिन अगर हिंसा फूठ प्रड्ी, तो बहु बिता किसो कारणके नहीं फूटेगी। हमारा

स्वराज्य-स्वप्न अभी बहुत बुर है। केक्लीय सरकार आसदनीका जो ८० फी सभी भाग खुब स्ट्व