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अहिंसा अहिंसाका प्रतीक आप लोगों से ऐसे कितने है कि जिनकी चौंमें जीवित श्रद्धा है ? क्या आप उभे हृदय से अहिंसाका प्रतीक मानते हैं ? मगर हमारी ऐसी श्रद्धा है तो हमारी कताईमें स्वतः एका शक्ति होगी। कताई तो बल्कि सविनय अवज्ञासे भी अधिक शक्तिशाली है। सभिनय अवज्ञासे श्रोष और द्वेषभावनाको उतेजन मिल सकता है गर' कताईसे ऐसा कोई दुर्भाप उत्तेजित नहीं होता। २० साल पहले गने अपने घर में अपनी श्रद्धाका एलान किया था। आज मैंने २० वर्ष अनु- भषके बलपर फिर उसी अडिग श्रद्धाका एलान करता हूँ। अगर आपको लगता है कि आपके हृदय, चने के प्रति ऐसी श्रद्धा नहीं है, तो मैं आपसे कहूँगा कि आप सत्याग्रहको भूल जायें। श्री प्रजापति मिश्रने बताया था कि महारो पाँच मीलके वक्करमें जितने गाँव आते हैं उनमें उन्होंने बर्खेको क्षाखिल करा दिया है। इसमें गर्व करनेकी ऐसी क्या बात है ? लक्ष्मी बाधूने एक सुन्दर प्रवशिनीका आयोजन किया है, पर उसमें कोई ऐसी चीज नहीं है जो मुझे हर्षोन्मुक्त कर सके। बिहारमें तो, जिसे कि इतने तमाम सुन्दर कार्यकत्ताओंको पैदा करनेका पार्थ है, ऐसा एक भी घर नहीं होना चाहिए, जिसमें वो न हो। बिहारकी तो हम पूरत महल सकते हैं, अगर हमें यह मालून हो जाय कि घमें कितनी शक्ति और कितनी सामर्थ है। मैं अपनी उन हजारों भषों मरने वालो बहिनोंकी बात नहीं कर रहा हूँ, जिन्हें अपने पेटके लिए कमाना जरूरी है, बल्कि मैं उन लोगोंके बारे में बातें कर रहा हूँ जो सत्य और अहिंसा नशा रखमेका करवा करते हैं। जिस क्षण में यह जान जायेंगे कि वर्धा हिंसाका प्रतीक है, उनके सामने एक नया प्रकाश आ जायगा, समयके अपग्ययको वे एक गुनाह समझने लगेंगे, मे किसीके वे बिलको बुखानेपाली भाषाका प्रयोग नहीं करेंगे और न उनके मन में कभी निरर्थक विचार उठेगे। । वर्या स्वतः एफ निर्जीव वस्तु है, पर जब हम उसमें अमुक गुणोंका आरोप कर देते हैं, तब वह एक सजीव वस्तु बन जाता है। रामनाम तक देया जाय तो स्वतः निजीप है, किन्तु वह भगवानका एक जीवित प्रतीक बन गया है। क्योंकि लाखों-करोड़ों मनुष्योंने उसमें अपना भक्ति- भाषको प्रतिष्ठित किया है। पर्खा एक पापी मनुष्य भी चला सकता है और राष्ट्रको सम्पत्तिको बढ़ा सकता है। मैं ऐसे लोगोंको जानता हूँ जिन्होंने मुझे बताया कि चौंकी मधुर संगीतमे उनकी विषय-वासना और दूसरे विकारोंका शमन कर दिया है। हिंदुस्तान में मैंने जो सत्याग्रहकी कल्पना कर रखी है उसके लिये चर्खा इसी कारण इतना आवश्यक हो गया है। जब मैने १९०८में हिंव स्वराज' लिखा तब वर्षा देखा भी नहीं था। मैंने तो दरअसल करघेको वर्ण समझा थालेकिन उस समय भी धर्वा मेरे लिय अहिंसाका एक प्रतीक था। इसलिए मैं एक बार फिर कहूंगा कि अगर लोगों को पर्खमें इस सरहको जीवित श्रद्धा नहीं है, तो वे सत्याग्रहमें न करें। वे अपने बलपर भले ही सत्याग्रह करें, पर थे मेरा कोई उपयोग नहीं कर सकेंगे। ५