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गांधीजी छगे ,और कुछ हड़तालियोंने तो,मेने मुत्ता है,गिक्षकके भानेरों पहले ही बोडोपर छिलना भी शुरू कर दिय्रा था। कमजोर शिक्षक अगर कही मिल जाते है, तो इनमेंसे कुछ हडुतालिये उन्हे डराने फुसलानेकी भी कोशिश करते है। सच तो यह है कि उन्होंने वाइसचांसकरफों भी यह धमकी दी थी कि अगर उन्होंने हमारी मांगे मंजूर नही की, तो हिंसा और रकक्‍तपातका गहारा लिया जायगा। “दूसरी महत्वपूर्ण बात जो मुझे आपको कहनी चाहिये वहू यह है कि हड़तालियोंका कुछ

गशरसे बाहरी आदमी भिछ जाते है-जो यूनिवर्सिटीमें घुसनेकेलिये गुंडोंको भाड़ेपर छाते हैं। असलियत तो यह हौ कि गैने बहुतसे ऐसे गुन्डां और दूसरे आदमियोंको, जो कि विद्यार्थी नहीं है, बरामदेके अन्दर और दूसरे क्लासोंके कमरोंके पास भी घूमने हुये देखा है। इसके जलाना विद्यार्थी वाइस-चांसलरके बारेमें अपशब्दोंका भी व्यवहार करते है। “अब जो कुछ म॑ कहना चाहता हूंवह यह है>-हम सब याने कई शिक्षुक और विद्या भियोंकी भी एक बड़ी तादाद यह महसुस' कर रही है कि हड़तालियोंकी ये प्रवृत्तियां सत्यपूर्ण भौरे अहिंसात्मक नहीं हैंऔर इसलिये सत्याग्रहकी' भावताक विरुद्ध हें।

“मुझे विश्वस्त रूपसे माऊूम हुआ हैकि कुछ हड़तालिये विद्यार्थी इसे अहिसा ही कहते हूँ । उनका कहता हैकि अगर महात्माजी यह घोषणा कर देंकि यह अहिंगा वहीं है तो हम इन

प्रवृत्तियोंकी बन्द कह देंगें। यह पन्न १७ फरवरीका हैऔर काका फालेलकरको लिखा गया है, जिन्हें कि चहू शिक्षक

अच्छी तरह जानते हूँ। इसके जिस अंशको भेंते नहीं छापा उससें इस बारेमें काका साहबकी राय पुछी गयी है कि विधा्थियोंके इस आचरणको क्या अहिसामय कहा जा सफता है और भारतके कितने ही विद्याथियोंमें अवजश्ञाकी जो भावना आ गई हैउस पर अफसोस जाहिर किया गया है । पत्रमें उन छोगोंके नाम भी दिये गये है, जो हड़ताछियोंकों अपनी बातपर भड़े रहुनेके लिये उसेज़ना वे रहे हूँ । हुड़तालके बारेमें मेरी राय प्रकाशित होनेपर फिसीने, जो स्पष्ठतयथा विद्यार्थीही मालूम पड़ता है,भुझे एक गुस्सेसे भरा हुआ तार भेजा जिसमें लिखा था कि हुड़तालियों का व्यवहार पूर्ण अहिसात्मक है ।लेकिन ऊपर मेने जो विवरण उद्धृत किया हूँवहु अगर सच है

तो मुझे कहनेमें कोई पशोपेश् नहीं हैकि विद्याथियोंका व्यवहार सचसूच हिसात्मक है। अगर कोई मेरे घरका रास्ता शेक दे तो निरेचय ही उसकी हिंसा बैसी ही कारगर होगी जैसे दरवाजेंसे बल-प्रयोग द्वारा सुझे धक्का वेनेसें होतो है । विज्ञाधियोंकों अगर अपने शिक्षकोंके खिलाफ सचमुच कोई शिकायत है,तो उन्हें हड़ताल ही नहीं बल्कि अपने स्कूल या काऊेजपर भी धरता बेनेका हक है।लेकित इसी हुद तक कि पढ़नेके

लिये जानेवालोंसे विनम्रताके साथ न जानेक्ी प्रार्थना करें। बोलकर या परचे बॉटकर वे ऐसा

कर सकते हूँ। लेकिन उन्हें रास्ता नहीं रौकना चाहिये, नउसपर कोई अनुचित दबाव ही डाकमा साहिये जो कि हुड़ताल करना तहीं- चाहते ।

श्ष्द