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अहिंसा

होनेपर, जिसका कि एक बिन होना अनिवार्य है,अगर इन ऊोकतंत्रोंकीघिजय हुई तो वह सिर्फ इसलिए होगी,फ्थोकिउनके पीछे यह र्याल करनेवाली प्रजाओंकासहारा होगा कि अपने यहाँके

शासवर्ग” हगारी भी आवाण है,जब कि पूसरे तीन राण्ट्रोंसेबहाँकी भजाएँ ही अपने यहाँकी तानाशाहियोंकेखिलाफ विद्रोह कर दे । मैं यह मानता हूँकि अहिसाको राष्ट्रीय पैमानेपर स्वीक्ृत किये बगैर वैधानिक या छोक-

तंत्नीय वासन जैसी कोई चीज नहीं हो सकती,इसलिये से अपनी शक्तिकों इस बातका प्रतिपादन करनेमे” लगाता हूं किअहिता एमारे व्यक्तिगत, सामाजिक , राजनीतिक, राष्ट्रीय और अच्त-

राष्ट्रीय जीवनका नियम है। में समझता हूँकि सेने प्रकाश देख लिया है,हालाँ कि देखा हैकुछ धुंधले झूपमें' हो। फिर भी सावधानीके साथ इसीलिये छिखता हूँ, क्योंकि में थह ढोंग नहीं करता फि सेने उस सारे लिमभकों जान लिया है। जहाँ अपने प्रयोगों कीसफलताओंको से"

जानता हूँयहाँ अपनी जलफलताओंका भी सुझे ज्ञान है। लेफिन सफलताएँ इतनी काफी है कि

मेरे अगर एक अभर आशा पैदा हो गयी है। यह मे अक्सर कहता रहा हें किअगर साधनोंकी सावधानी रक्खी जाय तो ध्येय अपनी फिक्र खुद कर लेगा। अहिसा साधन है, ओर लक्ष्य हरएक राष्ट्रके लिए है पूर्ण स्वाधीनता।

अस्तर्राष्ट्रीय संघ तभी होगा जब कि उसमें शासिल होनेवाले राष्ट्र पुरी तरह स्वाधीन हो । जो राष्ट्र अहिसाको जितना हृबयंगस करेगा उतना ही बह स्वाधीत होगा। एक बाल निदिचत है।

अहिसापर आधार रखनेयाले समाजमे' छोटे-से-छोदा राष्ट्र भी बड़े-बड़े राष्ट्रके सबान हीहोगा। बड़ुणन और छोटेपनका भाव बिलकुल नहीं होगा।

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इसपरसे यहू परिणास मिक्रत्तता हैकि गत्रनमेष्ठ आफ इंडिया एक्ट तो खालो दिखावा हैँ, जिसका स्थान एक ऐसे एक्टको लेना चाहिये भो खुद रष्ट्रके हारा ही बनाया जाग। जहाँतक प्रा्तीय स्थवराजफा सम्बन्ध है,किसी हृदतक उसको सम्हालना सम्भव लगा, वैसे उसके अमलका

मेरा अपना जो अनुभव हूँयह फिसी भी प्रकार छुखव नहीं हैँ।

कांग्रेसी सरकारोंकाजनतापर बेसा अहिसात्मक प्रभाव नहीं हैजिसकी कि मैने उनसे आशा की भी ।

लेकिन संघ-शासनका ढाँचा तो मेरे लिए सोचनेक लायक भो नहीं है,क्योंकि उसमें अनराभानोंकीसाझीवारीकी कह्पना की गयी है,फिर तह चाहे ढीली ही क्यों नेहो। रियासते"

फितली असमान हैं,इसका ऐसे बुरेझपसे प्रवर्शन किया जा रहा हैजिसके लिए से तेयार महीं था। इसलिए गधर्ममेण्ट आफ इंडिया ऐक्ट्सें' जिस संघ-शासनका समावेत्ष हूँउसे में"बिल़कुछ असंभव सानता हूँ।

इस प्रकार अपने झाप यह परिणास लिकलता हैकि जबतक अहिसाशों जाली नौलिके पजाय एक जीवित शक्ति याने अदूद धयेपके हपसें स्वीकार ते कर लिया जाय, तबतक मुझ जैसोंकेलिए, जो अहिसाके हासी है", वैधानिक या लोकतंत्रीय शासन एक द्रका स्थप्त हीहु। जब वि। मेंविदय-

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