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अहङ्कार

थी, दाढ़ी बढ़ी हुई थी और वस्त्र बहुमूल्य थे। उसके हाथ से आईना छूटकर गिर पड़ा और वह भय से चीख उठी।

पापनाशी स्तम्भित हो गया। उसका अपूर्व सौन्दर्य देखकर उसने शुद्ध अंतःकरण से प्रार्थना की—

'भगवान्, मुझे ऐसी शक्ति दीजिए कि इस स्त्री का मुख मुझे लुब्ध न करे, वरन् तेरे इस दास की प्रतिज्ञा को और भी दृण करे।

तब अपने को संभालकर वह बोला—

थायस, मैं एक दूर देश में रहता हूँ, तेरे सौन्दर्य की प्रशंसा सुनकर तेरे पास आया हूँ। मैंने सुना था तुमसे चतुर अभिनेत्री और तुमसे मुग्धकर स्त्री संसार में नहीं है। तुम्हारे प्रेम रहस्यों और तुम्हारे धन के विषय मे जो कुछ कहा जाता है वह आश्चर्य- जनक है, और उससे 'रोडोप' की कथा याद आती है, जिसकी कीर्ति को नील के माँझी नित्य गाया करते है। इसलिए मुझे भी तुम्हारे दर्शनों की अभिलाषा हुई, और अब मैं देखता हूँ कि प्रत्यक्ष सुनी-सुनाई बातों से कहीं बढ़कर है। जितना मशहूर है उससे तुम हजार गुनी चतुर और मोहिनी हो। वास्तव मे तुम्हारे सामने बिना मतवालों की भाँति डगमगाये आना असम्भव है।

यह शब्द कृत्रिम थे, किन्तु योगी ने पवित्र भक्ति से प्रभावित होकर सच्चे जोश से उनका उच्चारण किया। थायस ने प्रसन्न होकर इस विचित्र प्राणी की ओर ताका जिससे वह पहले भय- भीत हो गई थी। उसके अभद्र और उद्दण्ड वेष ने उसे विस्मित कर दिया । उसे अब तक जितने मनुष्य मिले थे, यह उन सबों से निराला था। उसके मन मे ऐसे अद्भुत प्राणी के जीवन-वृत्तान्त जानने की प्रबल उत्कण्ठा हुई। उसने उसका मज़ाक उड़ाते हुए कहा—