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अहङ्कार

मनोगत भाषों को संकेत, सैन, आकृति द्वारा व्यक्त करने मे प्रेम की घातों के दर्शाने मे, अत्यन्त कुशल था। हिजड़ों में यह गुण प्रायः इश्वरदत्त होते हैं। उसने थायस को यह विद्या सिखाई, खुशी से नहीं, बल्कि इसलिए कि इस तरकीब से वह जी भरकर थायस को गालियाँ दे सकता था। जब उसने देखा कि थायस नाचने गाने मानपुण होती जाती है और सिक लोग उसके नृत्यगान से नितर्ने मुग्ध होते है उतने मेरे नृत्य-कौशल से नहीं होते तो उसकी छाती पर साँप लोटने लगा। वह उसके गालों को नोच लेता, उसके हाथ पैर में चुटकियाँ काटता। पर उसकी जलन से थायस को लेशमात्र भी दुख न होता था। निर्दय व्यवहार का उस अभ्यास हो गया था। अन्तियोकस उस समय बहुत आबाद शहर था। मीरा जब इस शहर मे आई तो उसने रईसों से थायस की प्रशसा की। थायस का रूप-लावण्य देख कर लोगों ने बड़े चाव से उसे अपनी राग-रंग की मजलिसों मे निमत्रित किया, और उसके नृत्य, गानपर मोहित हो गये। शनैः शनैः यही उसका नित्य का काम हो गया। नृत्य गान समाप्त होने पर वह प्रायः सेठ साहूकारों, के साथ नदी के किनारे, घने कुंजों मे विहार करती। उस समय तक उसे प्रेम के मूल्य का ज्ञान न था, जो कोई बुलाता उसके पास जाती, मानों कोई जौहरी का लड़का धनराशि को कौड़ियों की भाँति लुटा रहा हो। उसका एक-एक कटाक्ष हृदय को कितना उद्विग्न कर देता है, उसका एक एक करस्पर्श कितना रोमांचकारी होता है, यह उसके अज्ञात यौवन को विदित न था।

एक रात को उसका मुजरा नगर के सबसे धनी रसिक युवकों के सामने हुआ। जब नृत्य बंद हुभा तो नगर के प्रधान राज्य कर्मचारी का बेटा, जवानी की उमंग और काम चेतना से