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अहङ्कार

को ताज़ा शराब और स्वादिष्ट फल खाने को मिलेंगे, और धनी लोग कुत्ते की भाँति दबके हुए मेज़ के नीचे बैठे रहेंगे और उनका जूठन खायेंगे।

यह शुभ-सन्देश शहर के कोने-कोने में गूँजने लगता और धनी स्वामियों को शंका होती कि कहीं उनके ग़ुलाम उत्तेजित होकर बगावत न कर बैठें। थायस का पिता भी उससे जला करता था। वह कुत्सित भावों को गुप्त रखता।

एक दिन एक चाँदी का नमकदान जो देवताओं के यज्ञ के लिए अलग रखा हुआ था चोरी हो गया। अहमद ही अपराधी ठहराया गया। अवश्य अपने स्वामी को हानि पहुँचाने और देवताओं का अपमान करने के लिए उसने यह अकर्म किया है! चोरी को साबित करने के लिए कोई प्रमाण न था और अहमद पुकार पुकारकर कहता था—मुझ पर व्यर्थ ही यह दोपारोपण किया जाता है। तिस पर भी वह अदालत में खडा किया गया। थायस के पिता ने कहा, यह कभी मन लगाकर काम नहीं करता। न्यायाधीश ने उसे प्रापदण्ड का हुक्म दे दिया। जब अहमद अदालत से चलने लगा तो न्यायाधीश ने कहा—तुमने अपने हाथों से अच्छी तरह काम नहीं लिया इसलिए अब वह सलीब में ठोक दिये जायँगे।

अहमद ने शान्तिपूर्वक फैसला सुना, दीनता से न्यायाधीश को प्रणाम किया और तब कारागार में बन्द कर दिया गया। उसके जीवन के केवल तीन दिन और थे, और तीनों दिन वह कैदियों को उपदेश देता रहा। कहते हैं उसके उपदेशों का ऐसा असर पड़ा कि सारे कैदी और जेल के कर्मचारी मसीह की शरण में आ गये। यह उसके अविचन धर्मानुराग का फल था।

चौथे दिन वह उसी स्थान पर पहुॅचाया गया जहाँ से दो