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अहङ्कार

वह बहुधा थायस को घुटनों पर बैठा लेता और पुराने जमाने के तहखानों की अद्भुत कहानियाँ सुनाता जो धन-लोलुप राजे महा- राजे बनवाते थे और वनवाकर शिल्पियों और कारीगरों का वध कर डालते थे कि किसी से बता न दें। कभी कभी ऐसे चतुर चोरों की कहानियाँ सुनाता जिन्होंने राजाओं की कन्या से विवाह किया और मीनार बनवाये। बालिका थायस के लिए अहमद बाप भी था, माँ भी था, दाई था और कुत्ता भी था। वह अहमद के पीछे फिरा करती, जहां वह जावा परछाई की तरह साथ लगी रहती। अहमद भी उस पर जान देता था। बहुधा रात को अपने पुआल के गहे पर सोने के बदले बैठा हुआ वह उसके लिए कागज़ के गुब्बारे और नौकायें बनाया करता।

अहमद के साथ उसके स्वामियों ने घोर निर्दयता का वर्ताव किया था। उसका एक कान कटा हुआ था और देह पर कोड़ों के दाग़ ही दाग़ थे। किन्तु उसके मुख पर नित्य सुखमय शान्ति खेला करती थी और कोई उससे न पूछता था कि इस आत्मा को शान्ति और हृदय के सन्तोष का स्रोत कहाँ था। वह बालक की तरह भोला था। काम करते-करते थक जाता तो अपने भद्दे स्वर में धार्मिक भजन गाने लगता जिन्हें सुनकर बालिका काँप उठती और वही बातें स्वम में भी देखती।

'हमसे बता मेरी तू कहाँ गई थी और क्या देखा था?'

'मैंने कफन और सुफेद कपड़े देखे। स्वर्गदूत कब्र पर बैठे हुए थे, और मैंने प्रभु मसीह की ज्योति देखी।'

थायस उससे पूछती—दादा तुम कब पर बैठे हुए दूतों का भजन क्यों गाते हो।

अहमद जवाब देता—मेरी आँखों की नन्हीं पुतली, मैं स्वर्ग,