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अहङ्कार

बन जाती है और अपने प्रेमियों के पास उड़ जाती है। यह अफ़ीमचियों की राप थी। थायस अपनी माँ से भली भाँति परिचित थी और जानती थी कि वह जादू टोना नहीं करती, हाँ उसे लोभ का रोग था और दिन की कमाई को रात भर गिनती रहती थी। आलसी पिता और लोमिनी माता थायस के लालन- पालन की ओर विशेष ध्यान न देते थे। वह किसी जंगली पौधे के समान अपनी बाढ़से बढ़ती जाती थी। वह मतवाले मल्लाहों के कमरबन्द से एक एक करके पैसे निकालने में निपुण हो गई। वह अपने अश्लील वाक्यों और बाजारी गीतों से उनका मनो- रंजन करती थी, यद्यपि वह स्वयं इनका आशय न जानती थी। घर शराब की महक से भरा रहता था। जहाँ तहाँ शराब के चमड़े के पीपे रखे रहते थे और वह मल्लाहों की गोद में बैठती फिरती थी। तब मुँह में शराब का लसका लगाये वह पैसे लेकर घर से निकलती और एक बुढ़िया से गुलगुले लेकर खाती। निस्यप्रति एक ही अभिनय होता रहता था। मल्लाह अपनी जान-जोखिम यात्राओं की कथा कहते, तब चौसर खेलते, देवताओं को गालियाँ देते और उन्मत्त होकर शराब, शराब, सब से उत्तम शराब! की रट लगाते। नित्यप्रति रात को मल्लाहों के हुल्लड़ से बालिका की नीद उचट जाती थी। एक दूसरे को वै घोंघे फेंक फ्रेंककर मारते जिससे मांस कट जाता था और भयंकर कोलाहल मचता था। कभी तलावारें भी निकल पड़ती थीं और रक्तपात हो जाता था।

'थायस को यह याद करके बहुत दुख होता था कि बाल्यावस्था' में यदि किसी को मुझसे स्नेह था तो वह सरल, सहृदय, अहमद था। अहमद इस घर का हब्शी गुलाम था, सवे से भी ज्यादा काला, लेकिन बड़ा सज्जन, बहुव नेक, जैसे रात की मीठी नींद