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थायस ने स्वाधीन, लेकिन निर्थन और मूर्तिपूजक माता-पिता के घर जन्म लिया था। जब वह बहुत छोटी-सी लडकी थी तो उसका पिता एक सराय का भटियारा था। उस सराय में प्रायः मल्लाह बहुत आते थे। बाल्यकाल की अश्र्खंल, किन्तु सजीव स्मृतियाँ उसके मन में अब भी संचित थीं। उसे अपने बाप की याद आती थी जो पैर-पर-पैर रखे अँगीठी के सामने बैठा रहता था। लम्बा, भारी भरकम, शान्तप्रकृति का मनुष्य था, उन फ़िरऊनों की भांति जिनकी कीर्ति सड़क के नुक्कड़ों पर चारों के मुख से नित्य अमर होती रहती थी। उसे अपनी दुर्वल माता की याद भी आनी थी जो भूखी दिल्ली की भाँति घर में चारों ओर चक्कर लगानी रहती थी। सारा घर उसके तीक्ष्ण कएठ- स्वरों से गूँजता और उसकी उद्दीपन नेत्रों की ज्योति से चमकता रहता था। पड़ोस वाले कहते थे यह डायन है, रात को उल्लू