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अहङ्कार


तुम्हारे पास क्या जवाब है?' वृद्ध ने सहिष्णुता से उत्तर दिया-- मित्र! कीचड़ में सोनेवाले कुत्ते और अबोध बन्दर का जवाब ही क्या?

पापनाशी का उद्देश्य केवल इस पृद्ध पुरुष को ईश्वर का मस्त बनाना था। उसकी शांतवृत्ति पर वह ललित हो गया। उसका क्रोध उड़ गया। बड़ी नम्रता से क्षमा-प्रार्थना की-मित्रवर, अगर मेरा धर्मोत्साह औचित्य की सीमा से बाहर हो गया है तो मुझे क्षमा करो। ईश्वर साक्षी है कि मुझे तुमसे नहीं, केवल तुम्हारी भ्राति से घृणा है। तुमको इस अन्धकार मे देखकर मुझे हार्दिक वेदना होती है, और तुम्हारे उद्धार की चिन्ता मेरे रोम-रोम में व्यात हो रही है। तुम मेरे प्रश्नों का उत्सर दो, मैं तुम्हारी उक्तियों का खडन करने के लिए उत्सुक हूँ।

'वृद्ध पुरुष ने शान्तिपूर्वक कहा--

मेरे लिए बोलना या चुप रहना एक ही बात है। तुम पूछते हो, इसलिए सुनो-जिन कारणों से मैंने यह सात्विक जीवन ग्रहण किया है। लेकिन मैं तुमसे इनका प्रतिवाद नहीं सुनना चाहता। मुझे तुम्हारी वेदना, शांति की कोई परवाह नहीं, और न इसकी परवाह है कि तुम मुझे क्या समझते हो। मुझे न प्रेम है न घृणा। बुद्धिमान पुरुष को किसी के प्रति ममत्व या द्वेष न होना चाहिए। लेकिन तुमने जिज्ञासा की है, उत्तर देना मेरा कतव्य है। सुनो, मेरा नाम टिमाकीज है। मेरे माता-पिता धनी सौदागर थे। हमारे यहाँ नौकाओं का व्यापार होता था। मेरा पिता सिकन्दर के समान चतुर और कार्यकुशल था। पर वह उतना लोभी न था। मेरे दो भाई थे। वह भी सहाजों ही का व्यापार करते थे। मुझे विद्या काव्यसन था। मेरे बड़े भाई को पिताजी ने एक धनवान् युवती से विवाह करने पर बाध्य किया, लेकिन मेरे भाई शीघ्र ही उससे असन्तुष्ट हो गये। 'उनका चित्त अस्थिर' हो गया। इसी'