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अहङ्कार


नग्न था। उसके सिर पर दादी के बाल सन हो गये थे और शरीर ईट से भी ज्यादा लाल था। पापनाशी ने साधुओं के प्रचलित शब्दों में उसका अभिवादन किया-'बन्धु, भगवान् तुम्हे शान्ति दे, तुम एक दिन स्वर्ग के आनन्द लाभ करो।

पर उस वृद्ध पुरुष ने इसका कुछ उत्तर न दिया, अचल बैठा रहा। उसनेमानों कुछ सुना ही नहीं। पापनाशी ने समझा कि वह ध्यान में मग्न है। वह हाथ बाँधकर उकड़ें बैठ गया और सूर्यास्त तक इंशप्रार्थना करता रहा। जव अब भी वह वृद्ध पुरुष मूर्तिवत बैठा रहा तो उसने कहा-पूज्य पिता, अगर आपकी समाधि टूट गई है तो मुझे प्रभु मसीह के नाम पर आशीर्वाद दीजिये।

वृद्ध पुरुष ने उसकी ओर विना ताके ही उत्तर दिया-

'पथिक, मैं तुम्हारी बात नहीं समझा और न प्रभु मसीह ही को जानता हूँ।' पापनाशी ने विस्मित होकर कहा-अरे! जिसके प्रति ऋपियों ने भविष्यवाणी की, जिसके नाम पर लाखों आत्मायें बलिदान हो गईं, जिसकी सीपर ने भी पूजा की, और जिसका जयघोष सिलसिली की प्रतिमा ने अभी-अभी किया है, क्या उस प्रभु मसीह के नाम से भी तुम परिचित नहीं हो? क्या यह सम्भव है?

वृद्ध-हाँ मित्रवर, यह सम्भव है, और यदि संसार में कोई वस्तु निश्चित होती वो निश्चित भी होता!

पापनाशी उस पुरुप की अज्ञानावस्था पर बहुत विस्मित और दुखी हुआ। बोला, यदि तुम प्रभु मसीह को नहीं जानते वो तुम्हारा धर्म कर्म सब व्यर्थ है, तुम कभी अनन्त-पद नहीं प्राप्त कर सकते।

वृद्ध-कर्म करना, या कर्म से हटना दोनों ही व्यर्थ हैं। हमारे जीवन और मरण में कोई भेद नहीं।