यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११
अहङ्कार

पालम-बन्धु पापनाशी, मैं इस योग्य भी नहीं हूँ कि तुम्हारे चरणों की रज भी माथे पर लगाऊँ और मेरे पापों की गणना मरुस्थल के घालुकयों से भी अधिक है। लेकिन मैं वृद्ध हूँ और मुझे जो कुछ अनुभव है उससे तुम्हारी सहर्ष सेवा करूँगा।

पापनाशी-तो फिर आपसे स्पष्ट कह देने में कोई संकोच नहीं है कि मै इस्कन्द्रिया में रहनेवाली 'थायस' नाम की एक पतित स्त्री की अधोगति से बहुत दुखी हूँ। वह समस्त नगर के लिए कलंक है और अपने साथ कितनी ही आत्माओं का सर्वनाश कर रही है।

पालम-बन्धु पापनाशी, यह ऐसी व्यवस्था है जिस पर हम जितने आँसू बहाय कम हैं। भद्र श्रेणी में कितनी हो रमणियों का जीवन ऐसा ही पापमय है। लेकिन इस दुरावस्था के लिये तुमने कोई निवारण विधि सोची है।

पापनाशी-बन्धु पालम, मैं इसकन्द्रिया जाऊँगा, इस बेश्या को तलाश करूँगा और ईश्वर की सहायता से उसका उद्धार करूंगा। यही मेरा संकल्प है। आप इसे उचित समझते हैं?

पालम–प्रिय बन्धु, मैं एक अधम आयी हूँ, किन्तु हमारे पूज्य गुरु ऐन्टोनी का कथन था कि मनुष्य को अपना स्थान छोड़ कर कहीं और जाने के लिये उतावली न करनी चाहिये।

पापनाशी-पूज्य-बन्धु, क्या आपको मेरा प्रस्ताव पसन्द नहीं है?

पालम-प्रिय पापनाशी, ईश्वर न करे कि मैं अपने बन्धु के विशुद्ध भाषों पर शंका करूँ, लेकिन हमारे श्रद्धेय गुरु ऐन्टोनी का ग्रह भी कथन था कि जैसे मछलियां सूखी भूमि पर मर जाती हैं, वही दशा उन साधुओं की होती है जो अपनी कुटी छोड़कर संसार के प्राणियों से मिलते जुलते हैं। यहाँ मलाई की कोई आशा नहीं।

यह कहकर संत पालम ने फिर कुदाल हाथ मे ली और धरती