यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३२
अहड़्कार

नहीं हैं। मानव-प्रेम ही संसार में सबसे उत्तम रत्न है। मेरा तुझ पर अनन्त प्रेम है। अभी न मर। यह कभी नहीं हो सकता, तेरा महत्व इससे कहीं अधिक है, तू मरने के लिए बनाई ही नहीं गई। आ, मेरे साथ चल! यहाँ से भाग चलें। मैं तुझे अपनी गोद में उठाकर पृथ्वी की उस सीमा तक ले जा सकता हूँ। आ, हम प्रेम में मग्न हो जायें। प्रिये, सुन, मैं क्या कहता हूँ। एक बार कह दे, मैं जिऊँगी—मैं जीना चाहती हूँ! थायस, उठ, उठ!

थायस ने एक शब्द भी न सुना। उसकी दृष्टि अनन्त की ओर लगी हुई थी।

अंत में वह निर्बल स्वर में बोली—

स्वर्ग के द्वार खुल रहे हैं, नैं देवदूतों को, नबियों को और सन्तों को देख रही हूँ—मेरा सरल हृदय थियोडोर उन्ही मे है। उसके सिर पर फूलों का मुकुट है, वह मुसकिराता है, मुझे पुकार रहा है—दो देवदूत मेरे पास आये हैं, वह इधर चले आ रहे हैं...वह कितने सुन्दर हैं! मैं ईश्वर के दर्शन कर रही हूँ!

उसने एक प्रफुल्ल उच्छ्वास लिया और उसका सिर तकिए पर पीछे गिर पड़ा। थायस का प्राणान्त हो गया। सब देखते ही रह गये, चिड़िया उड़ गई।

पापनाशी ने अतिम बार, निराश होकर, उसको गले से लगा लिया। उसकी आँखें उसे तृष्णा, प्रेम और क्रोध से फाड़े खाती थीं।

अलबीना ने पापनाशी से कहा!

दूर हो, पापी पिशाच!

और उसने बड़ी कोमलता मे अपनी उँगलियाँ मृत बालिका की पलकों पर रखी। पापनाशी पीछे हट गया, जैसे किसी ने