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अहङ्कार

धन्य है जिसकी आत्मा बन्द द्वार के समान है। वही पुरुष सुखी है जो गूॅगा, बहरा, अन्धा होना जानता है, और जो इसलिए सांसारिक वस्तुओं से अज्ञात रहता है कि ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करें।

जोजीमस ने इस कथन पर विचार करने के बाद उत्तर दिया—

पूज्य पिता, तुमने अपनी आत्मा मेरे सामने खोलकर रख दी है, इसलिए आवश्यक है कि मैं अपने पापों को तुम्हारे सामने स्वीकार करूँ। इस भाँति हम अपनी धर्म-प्रथा के अनुसार परस्पर अपने-अपने अपराधों स्वीकार कर लेगे। यह व्रत धारण करने के पहले मेरा सांसारिक जीवन अत्यन्त दुर्वासनामय था। मदौरा नगर में, जो वेश्याओं के लिए प्रसिद्ध था, मैं नाना प्रकार के विलास भोग किया करता था। नित्यप्रति रानि समय मे जवान विषयगामियों और वीणा बजानेवाली स्त्रियों के साथ शराब पीता, और उनमें जो पसन्द आती उसे अपने साथ घर ले जाता। तुम जैसा साधु पुरुष कल्पना भी नहीं कर सकता कि मेरी प्रचण्ड कामातुरता मुझे किस सीमा तक ले जाती थी। बस इतना ही कह देना पर्याप्त है कि मुझसे न विवाहिता पचत्ती था न देवकन्या, और मैं चारों ओर व्यभिचार और अधर्म फैलाया करता था। मेरे हृदय में कुवासनाओं के सिवा और किसी बात का ध्यान ही न आता था। मैं अपनी इन्द्रियों को मदिरा से उत्तेजित करता था और मैं यथार्थ मे मदिरा का सबसे बड़ा पियक्कङ समझा जाता था। तिस पर मैं ईसाई धर्मावलम्बी था, और सलीव पर चढ़ाये गये मसीह पर मेरा अटल विश्वास था। अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति भोग विलास में उड़ाने के बाद मैं अभाव की वेदनाओं से विकल होने लगा था कि मैंने अपने रँगीले सहचरों में सब से बलवान् पुरुष को यकायक एक भयं-