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अहङ्कार

नाम जोज़ीमस है। मैं इन तपस्वियों का अध्यक्ष हूँ जो इस समय तुम्हारे चरणों पर गिरे हुए हैं। अपने शिष्यों की भाँति मैं भी तुम्हारे चरणों पर सिर रखता हूँ कि पुत्रों के साथ पिता को भी तुम्हारे शुभ शब्दों का फल मिल जाय। हम लोगों को अपने आशीर्वाद से शान्ति दीजिये ; उसके बाद उन अलौकिक कृत्यों का भी वर्णन कीजिये जो ईश्वर आपके द्वारा पूरा करना चाहता है। हमारा परम सौभाग्य है कि आप जैसे महान पुरुष के दर्शन

पापनाशी ने उत्तर दिया—

बन्धुवर, तुमने मेरे विषय में जो धारणा बना रखी है वह यथार्थ से कोसों दूर है। ईश्वर की मुझ पर कृपादृष्टि होनी तो दूर की बात है, मैं उसके हाथों कठोरतम यातनाएँ भोग रहा हूँ। मेरी जो दुर्गति हुई है उसका वृत्तान्त सुनाना व्यर्थ है । मुझे स्तम्भ के शिखर पर देवदूत नहीं ले गये थे। यह लोगों को मिथ्या कल्पना है। वास्तव में मेरी आँखो के सामने एक परदा पड गया है और मुझे कुछ सूझ नहीं पड़ता। मैं स्वप्नवत् जीवन व्यतीत कर रहा हूँ। ईश्वर-विमुख होकर मानव जीवन स्वप्न के समान है । जब मैंने इस्कन्द्रिया की यात्रा को थी तो थोड़े ही समय मे मुझे कितने ही वादों के सुनने का अवसर मिला और मुझे ज्ञात हुआ कि भ्रान्ति की सेवा गणना से परे है। वह नित्य मेरा पीछा किया करती है और मेरे चारो तरफ संगीनों की दीवार खड़ी है।

जोनिमस ने उत्तर दिया—

पूज्य पिता, आपको स्मरण रखना चाहिए कि संतगण और मुख्यतः एकान्तसेवी संतगण भयंकर यातनाओं से पीड़ित होते रहते हैं। अगर यह सत्य नहीं है कि देवदूत तुम्हे ले गये तो