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अहङ्कार

प्रियतम, मैं उठ नहीं सकती। मेरे ऊपर एक आदमी सोया हुआ है।

सहसा पापनाशी को ऐसा मालूम हुआ कि वह अपना गाल किसी स्त्री के हृदयस्थल पर रखे हुआ है। वह तुरन्त पहचान गया। यह वही सितार बजानेवाली युवती है। वह ज्योंही जरा- सा खिसका तो स्त्री का बोझ कुछ हलका हो गया, और उसने अपनी छाती ऊपर उठाई। पापनाशी तब कामोन्मत्त होकर, उस कोमल, सुगंधमय, गर्म शरीर से चिमट गया और दोनों हाथों से उसे पकड़कर भेच लिया। सर्वनाशी दुर्दमनीय वासना ने उसे परास्त कर दिया। गिड़गिड़ाकर यह कहने लगा—

ठहरो, ठहरो, प्रिये, ठहरो, मेरी जान !

लेकिन युवती एक छलाँग मे क़ब्र के द्वार पर जा पहुॅची। पापनाशी को दोनों हाथ फैलाये देखकर वह हँस पड़ी और उसकी मुसकिराहट शशि की उज्ज्वल किरणों में चमक उठी।

उसने निठुरता से कहा—

मैं क्यों ठहरूँ! ऐसे प्रेमी के लिए जिसकी भावनाशक्ति इतनी सजीव और प्रखर हो, छाया ही काफी है। फिर तुम अब पतित हो गये तुम्हारे पतन मे अब कोई कसर नहीं रही। मेरी मनोकामना पूरी हो गई, अब मेरा तुमसे क्या नाता ?

पापनाशी ने सारी रात रो-रोकर काटी, और उषाकाल हुआ तो उसने प्रभु मसीह की वदना की जिसमें भक्तिपूर्ण व्यंग भरा हुआ था—

ईसू, प्रभु ईसू, तूने क्यों मुझसे आँखें फेर लीं ? तू देख रहा है कि मैं कितनी भयावह परिस्थितियों में घिरा हुआ हूँ। मेरे प्यारे मुक्तिदाता, आ, मेरी सहायता कर । तेरा पिता मुझसे नाराज है, मेरी अनुनय-विनय कुछ नहीं सुनता, इसलिए याद