यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

उन दिनों नील नदी के तट पर बहुत से तपस्वी रहा करते थे। दोनों ही किनारों पर कितनी ही झोपड़ियाँ थोड़ी-थोड़ी दूर पर बनी हुई थीं। तपस्वी लोग इन्हीं में एकान्तवास करते थे और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे की सहायता करते थे। इन्हीं झोपड़ियों के बीच में जहाँ तहाँ गिरजे बने हुए थे। प्रायः सभी गिरजाघरों पर सलीब का आकार दिखाई देता था। धर्मोत्सवों पर साधु-सन्त दूर-दूर से यहाँ आ जाते थे। नदी के किनारे जहाँ तहाँ मठ भी थे जहाँ तपस्वी लोग अकेले छोटी-छोटी गुफाओं मे सिद्धि-प्राप्ति करने का यत्न करते थे।

यह सभी तपस्वी बड़े-बड़े कठिनव्रत धारण करते थे, केवल सूर्यास्त के बाद एक बार सूक्ष्म आहार करते। रोटी और नमक के सिवाय और किसी वस्तु का सेवन न करते थे। कितने ही तो समाधियों या कन्दराओं में पड़े रहते थे। सभी ब्रह्मचारी थे, सभी मिताहारी थे। वह ऊन का एक कुरता और कन्टोप पहनते थे, रात को बहुत देर तक जागते और भजन करने के पीछे भूमि