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अहङ्कार

अपने को बिना किसी प्रकार के संकावट के शैतान के हाथों में सौंप देते हैं। यह उस पुनीतात्मा ऐन्टोनी के विचार थे। मैं अज्ञानी मूर्ख बुड्ढा हूँ लेकिन गुरु के मुख से जो कुछ सुना था वह अब तक याद है।

पापनाशी ने पालम संत को इस शुभादेश के लिए धन्यवाद दिया और उस पर विचार करने का वादा किया। जब वह उससे विदा होकर नरकटों के बाड़े के बाहर आ गया जो बग़ीचे के चारों ओर बना हुआ था, तो उसने पीछे फिर कर देखा। सरल, जीवन्मुक्त साधु पालम पौधों को पानी दे रहा था, और उसकी झुकी हुई कमर पर कबूतर बैठा उसके साथ-साथ घूमता था। इस दृश्य को देखकर पापनाशी रो पड़ा।

अपनी कुटी में जाकर उसने एक विचित्र दृश्य देखा। ऐसा जान पड़ता था कि अगणित बालुकण किसी प्रचण्ड आँधी से उडकर कुटी में फैल गये हैं। जब उसने घरा ध्यान से देखा तो प्रत्येक बालुकरण यथार्थ में एक अतिसूक्ष्म आकार का गीदड़ था, सारी कुटी शृगाल-मय हो गई थी।

उसी रात को पापनाशी ने स्वप्न देखा कि एक बहुत ऊँचा पत्थर का स्तम्भ है जिसके शिखर पर एक आदमी का चेहरा दिखाई दे रहा है। उसके कान में कहीं से यह आवाज आई- इस स्वम्भ पर चढ़!

पापनाशी जागा वो उसे निश्चय हुआ कि यह स्वम मुझे ईश्वर की ओर से हुआ है। उसने अपने शिष्यों बुलाया और उनको इन शब्दों में सम्बोधित किया—

प्रिय पुत्रो, मुझे आदेश मिला है कि तुमसे फिर बिदा माँगूँ और जहाँ ईश्वर ले जाय वहाँ जाऊँ । मेरी अनुपस्थिति में फ्लेवियन की प्राक्षाओं को मेरी ही आज्ञाओं की भाँति मानना