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अहङ्कार

थायस को किसी कुटी में बन्द कर दिया जाय, जिससे वह एकान्त में अपने पूर्व जीवन पर विचार करे, आत्म-शुद्धि के मार्ग का अवलम्बन करे।

मठ की अध्यक्षिणी इस प्रस्ताव से सहमत हो गई। वह थायस को एक कुटी में ले गई जिसे कुमारी लीटा ने अपने चरणों से पवित्र किया था और जो उसी समय से खाली पड़ी हुई थी। इस तंग कोटरी में केवल एक चारपाई, एक मेज़ और एक घड़ा था, और जब थायस ने उसके अन्दर कदम रखा, तो चौखट को पार करते ही उसे अकथनीय आनन्द का अनुभव हुआ।

पापनाशी ने कहा—

मैं स्वयं द्वार को बन्द करके उस पर एक मुहर लगा देना चाहता हूँ, जिसे प्रभु मसीह स्वयं आकर अपने हाथों में तोड़ेंगे।

वह उसी क्षण पास की जलधारा के किनारे गया, उसमें से मुट्ठी भर मिट्टी ली, उसमें अपने मुँह का थूक मिलाया और उसे द्वार के दरवाजों पर मढ़ दिया। सब खिड़की के पास आकर, जहाँ थायस शान्तचित्त और प्रसन्नमुख बैठी हुई थी, उसने भूमि पर सिर झुकाकर तीन बार ईश्वर की वन्दना की।

ओ हो ! उस स्त्री के चरण कितने सुन्दर हैं जो सद्मार्ग पर चलती है ! हाँ, उसके चरण सुन्दर, कितने कोमल और कितने गौरवशील है, और उसका मुख कितना कान्तिमय !

यह कहकर वह उठा, कन्टोप अपनी आँखों पर खींच लिया, मन्द गति से अपने आश्रम की ओर चला।

अलबीना ने अपनी एक कुमारी को बुलाकर कहा—

प्रिय पुत्री, तुम थायस के पास आवश्यक वस्तुयें पहुँचा दो, अर्थात रोटियाँ, पानी और एक तीन छिद्रोंवाली बाँसुरी ।

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