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अहङ्कार

थायस ने उत्तर दिया—

हाँ निसियास, तुम्हारी कथन सर्वथा निर्मूल नहीं है। मैं तुम जैसे मनुष्यों के साथ रहते-रहते तंग आ गई हूँ, जो सुगन्ध से बसे, विलास में डूबे हुए, सहृदयं आत्मसेवी प्राणी हैं। जो- कुछ मैने अनुभव किया है, उससे मुझे इतनी घृणा हो गई है कि अब मैं अज्ञात आनन्द की खोज में जा रही हूॅ। मैंने उस सुख को देखा है जो वास्तव में सुख नहीं था, और आज मुझे एक गुरु मिला है जो बतलाता है कि दुःख और शोक ही में सच्चा आनन्द है। मेरा उस पर विश्वास है क्योंकि उसे सत्य का ज्ञान है।

निसियास ने मुसकिराते हुए कहा—

और प्रिये, मुझे तो सम्पूर्ण सत्यों का ज्ञान प्राप्त है। वह केवल एक ही सत्य का ज्ञाता है, मैं सभी सत्यों का ज्ञाता हूँ । इस दृष्टि से तो मेरा पद उसके पद से कहीं ऊँचा है, लेकिन सच पूछो तो इससे न कुछ गौरव प्राप्त होता है, न कुछ आनन्द ।

तब यह देखकर कि पापनाशी मेरी ओर तापमय नेत्रों से ताक रहा है उसने उसे सम्बोधित करके कहा—

प्रिय मित्र पापनाशी, यह मत सोचो कि मैं तुम्हें निरा बुद्ध, पाखडी या अंधविश्वासी समझता हूँ। यदि मैं अपने जीवन की तुम्हारे जीवन से तुलना करूँ, तो मैं स्वयं निश्चय न कर सकूँगा कि कौन श्रेष्ठ है । मैं अभी यहां से जाकर स्नान करूँगा, दासों ने पानी तैयार कर रखा होगा, तब उत्तम वस्त्र पहनकर एक तीतर के डैनों का नाश्ता करूँगा, और आनन्द से पलंग पर लेटकर कोई कहानी पहुँगा या किसी दार्शनिक के विचारों का आस्वादन, करूँगा । यद्यपि ऐसी कहानियाँ बहुत पढ़ चुका हूँ और दार्श- निकों के विचारों में भी कोई मौलिकता या नवीनवा नहीं रही। तुम अपनी कुटी में लौटकर जाओगे और वहाँ किसी सिधाये