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भूमि इस्कन्दिया में चली पाती है। पर यहाँ पाने के पहल वह एक पुरुष की प्रेमिका रह चुकी है, और उसी विशुद्ध प्रेम को फिर भोगने की लालसा उसे विकल करती रहती है।

इस्कन्द्रिया में पहले तो उसके अभिनय करने में सफलता नहीं होती, पर थोड़े ही दिनों में वह वहाँ की नाट्यशाताओं का श्रृंगार बन जाती है। प्रेमियों की आमदरफ्त शुरू होती है, कंचन की वर्षा होने लगती है। किन्तु थायस को इन प्रेमियों के साथ उस मौलिक, अद्भुत प्रेम का आनन्द नहीं प्राप्त होता, जिसके लिए उसका हृदय तड़पता रहता था! वह साधारण स्त्रियों की भाँति धार्मिक प्रवृत्ति की स्त्री थी। इसमें भक्ति थी, श्रद्धा थी, भय था। वह 'अज्ञात को जानने के लिए' उद्विग्न रहती थी, उसे भविष्य का सदा भय लगा रहता था। उसके प्रेमियों में सुखवादी निसियास भी या, लेकिन उसका मन निसियास से न मिलता था। वह कहती है—

'मुझे तुम जैसे प्राणियों से घृणा है जिनको किसी वात की आशा वहीं, किसी वास का भय नहीं। मैं ज्ञान की इच्छुक हूॅ, सच्चे ज्ञान की इच्छुक हूँ।'

इसी 'ज्ञान' प्राप्त करने के उद्देश्य से वह दार्शनिकों के ग्रंथों का अध्ययन करती, किन्तु जटिलता और भी जटिल होती जाती थी। एक दिन वह रात को भ्रमण करते हुए एक गिरजाघर में जा पहुॅचती है। वहाँ उसे यह देखकर आश्चर्य होता है कि उसके ग़ुलाम 'अहमद' की, जिसका ईसाई नाम 'थियोडोर' या, जयन्ती मनाई जा रही है। थायस भी सिर झुकाकर, बड़े दीन-भाव से थियोहोर की कब्र को चूमती है। उसके मन में यह प्रश्न होता है—वह कौन-सी वस्तु है जिसने थियोडोर को पूज्य बना दिया? वह घर लौटकर पाती है तो निश्चय करती है कि मैं, थियोडोर की भाँति त्यागी और दीन बनूँगी। यह निसियास से कहती है—

'मुझे उन सब प्राणियों से घृणा है जो सुखी है, जो धनी हैं।'