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अहङ्कार

उसने सिर हिलाकर कहा-

ईश्वर ? ईश्वर से कौन कहता है कि सदैव परियों के कुख' पर आँखें जमाय रखे ? यदि हमारे काम उसे नहीं भाते तो वह यहाँ से चला क्यों नहीं जाता है लेकिन हमारे कर्म से बुरे बागवे ही क्यों हैं ? उसी ने तो हमारी सृष्टि की है। जैसा उसने बनाया है वैसे ही हम हैं। जैसी वृत्तियां उसने हमें दी हैं उसी के अनुसार हम आचरण करते हैं । फिर उसे हमसे रुष्ट होने कार अथवा विस्मित होने का क्या अधिकार है। उसकी तरफ से लोग बहुत सी मनगढ़त बातें किया करते हैं और उसको ऐसे-ऐसें विचारों का श्रेय देते हैं जो उसके मन में कभी न थे। तुमको उसके मन की बातें जानने का दावा है। तुमको उसके चरित्र का यथार्थ ज्ञान है। तुम कौन हो कि उसके वकील बनकर मुझे ऐसी-ऐसी आशायें दिलाते हो!

पापनाशी ने मैंगनी के बहुमूल्य वस्त्र उसार कर नीचे का मोटा कुरता दिखाते हुए कहा-

मैं धर्माश्रम का योगी हूँ। मेरा नाम पापनाशी है। मैं उसी पवित्र तपोभूमि से पा रहा हूँ। ईश्वर की माला से मैं एकान्तसेवन करता हूँ। मैन संसार से और संसार के प्राणियों से मुंह मोड़ लिया था। इस पापमय संसार में निर्मित रहना ही मेरा सहिष्ट-मार्ग है। लेकिन मेरी मूर्ति मेरी शान्तिकुटीर में आकर मेरे सम्मुख खड़ी हुई और मैंने देखा कि तू पाप और वासना में जिस है, मृत्यु तुमे अपना प्रास बनाने को खड़ी है। मेरी दया जागृत हो गई और तेराउद्धार करने के लिए मांउपस्थित हुन । मैं तुझे पुकार कर कहता हूँ-थायस, उठ, अयासमय नहीं है। योगी के यह शब्द मुक्त कर थायस भय से थरथर काँपने बगी। उसका मुख श्रीहीन हो गया, बहकोश लिटकायें दोनों