। पायोक्ति इसमें रामजी ने सीधे शब्दों में यह न कहकर कि 'मैं रावण को मारूँगा इस प्रकार कहा, जैसा कि दोहे के उत्तरार्द्ध से प्रकट है। [२] 'मिस करि कारज साधियै' जहाँ किसी बहाने से इच्छित कार्य के साधन का वर्णन हो, यह दूसरी पर्यायोक्ति होगी। यथा- नाथ लषन पुर देखन चहहों । प्रभु संकोच डर प्रगट' न कहहीं ॥ जो राउर अनुसासन पाऊँ । नगर दिखाय तुरत ले आऊँ। यहाँ स्वयं रामजी को जनकपुर देखने की इच्छा थी, पर लक्ष्मण की इच्छा का बहाना करके आज्ञा मांगते हैं । पुनः- दो०-देखन मिस मृग बिहँग तरु फिरै बहोरि बहोरि । निरखि निरखि रघुवीर छवि बाढ़ प्रीति न थोरि ।। पुर बालक कहि कहि मृदुबचना । सादर प्रभुहिं दिखावहिं रचना॥ दो 10-सब सिसु यहि मिस प्रेमबस परसि मनोहर गात । तनु पुलकहिं अति हर्ष हिय देखि देखि दोउ भ्रात ॥ पुनः-पूसमास सुनि सखिन सन साई चलत सवार । लै कर बीन प्रबीन तिय गायो राग मलार ॥ यहाँ मलार राग गाकर पानी बरसा देने से स्वामी का विदेश- गमन रोक दिया। इस गाने के बहाने से इच्छित कार्य का साधन किया। सूचना-इस अलंकार में मिस, व्याजादि शब्दों का कथन अनिवार्य नहीं है । चाहे कथन करे, चाहे और प्रवार से कहे । कैतवापह नुति में एक वस्तु के छिपाने के हेतु मिस या व्याज से दूसरी वस्तु प्रकट की जाती है, और इस अलंकार में किसी विशेष इच्छित कार्य साधन के लिये कोई युक्तियुक्त क्रिया की जाती है जिसे केवल मिस वा छल कह सकते हैं। द
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