पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/८१

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श्लेप ७७

यहाँ 'नरहरि' शब्द साभिप्राय है। यमराज को हाथी ( करि ) माना तो हाथी को मारने के लिये नरहरि (नृसिंह ) समर्थ है। ७-हृषीकेस सुनि नाउँ जाउँ बलि अति भरोस जिय मोरे। तुलसिदास इंद्रियसंभव दुख हरे बनिहि प्रभु तोरे ॥ 4-तुलसिदास भवव्याल ग्रसित तव सरन उरगरिपुगामी। 'हृषीकेस' और 'उरगरिपुगामी संज्ञाएँ साभिप्राय हैं, क्योंकि हृषीकेश ( हृषीक ईश = इंद्रियों का मालिक ) ही इंद्रियसंभव दुःख दूर कर सकता है, और उरगरिपुगामी (गरुड़ पर सवार होनेवाला ) ही 'भवव्याल' से रक्षा कर सकता है। १८-श्लेष दो०-दोय तीन अरु भाँति बहु आवत जामैं अर्थ । श्लेप नाम ताको कहत जिनकी बुद्धि समर्थ ॥ कुछ उदाहरण- १-द्विजतिय तारक पूतना मारन मैं अति धीर । काकोदर को दरपहर जय यदुपति रघुबीर ॥ २-सगुन सभूषण सुभ सरस सुबरन सुपद सराग । इमि कबिता अरु कामिनी लहै जु सो बड़ भाग । ३-सुंदर सोहै सुगंधित अंग अभंग अनंग कला ललिता है। तैसी 'किसोर' सोहात सुयोगिन भोगिन हूँ को मनोहरता है। संग अली अवली-रव राजत अंग रसीली बसी करता है। कोमलतायुत वीर बसंत की बैहर की बनिता की लता है ।

  • इस अलंकार को फारसी और उर्दू में 'ईहाम' कहते हैं ।