पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/८०

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अलंकारचंद्रिका विवरण -जहाँ कोई ऐसा विशेषण लाया जाय जो उस पद की क्रिया से सम्बन्ध रखता हो । यथा- १-जानो न नेकु व्यथा पर की बलिहारी तऊ पै सुजान कहावत । २-भाल में जाके सुधाधर है वहै साहेव ताप हमारो हरैगो। अंग है जाको विभूति भरो वहै भौन में सम्पति भूरि भरैगो। घातक है जो मनोभघ को जग पातक वाही के जोर जरैगो 'दास' जू सीस पै गंग लिये रहै ताकी कृपा कहो को न तरंगो॥ ३-चक्रपानि हरि को निरखि असुर जात भजि दूरि । रस बरसत घनश्याम तुम ताप हरत मुद पूरि ॥ ४-सीतल करेंगे मेटि ताप त्रिभुवन राम स्याम धन बरन वरसि दान धारा को। ॥ १७-परिकरांकुर दो०-अभिप्राय जहँ क्रिया को है विशेप्य पद माहिं । सुकवि सकल वरनन करै परिकर अंकुर ताहि ॥ यथा-रतनाकर वासी रमा प्रानन को आधार ! हरि कुबेर पति रावरो हरै रोग विकरार ॥ २-बदन मयंक तापत्रय मोचन । ३-सुनहु विनय मन बिटप असोका। सत्य नाम करु हरु मम सोका। धरनिसुता धीरज धरउ समय सुधर्म बिचारि । ५--हे हरि कस न हरहु भ्रम भारी । ६--जम करि मुहँ तरहरि पर्यो यहि धर हरि चितलाय। विषयतृषा परिहरि अजौं नरहरि के गुन गाय ॥ ॐ इस अलंकार को भी फारसी और उर्दू में 'सनश्रत इश्तकाक' कह सकते हैं।