पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/६९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अतिशयोक्ति ६५ सूचना-फलोत्प्रेक्षा और हेतूप्रेक्षा की पहचान करना विद्यार्थियों के लिये तनिक कठिन बात है। इसकी जाँच के लिये सर्वप्रथम 'क्रिया' को जाँचो। यदि क्रिया किसी हेतु से कही गई जान पड़े तो हेतूत्प्रेक्षा समझो और यदि उस क्रिया से किसी फल की इच्छा प्रकट हो तो फलो. स्प्रेक्षा समझो। नीचे लिखे उदाहरणों पर विचार करो- १-राधिकाजी के अधर और नासिका की छवि अनूप है, मानो बिबाफल को देखकर लालचवश आकर शुक बैठा हो। (सिद्धास्पद हेतूत्प्रेक्षा) २-राधिकाजी के अधर और नासिका की छवि अनूप है, मानो विवाफल का स्वाद लेने के लिये शुक चोंच मारना चाहता है। (सिद्धास्पद फलोत्प्रेक्षा ) ३–श्रम से पसीने की बूंदें लटों द्वारा मुख पर गिर रही हैं, मानो चंद्र को राहु का सताया हुआ समझकर नागवृंद उसपर अमृत बरसा रहे हैं (असिद्धास्पद हेतूत्प्रेक्षा) ४-मानो राहु की युद्धजनित पीड़ा दूर करने के लिये नाग- वृंद चंद्र पर अमृत बरसा रहे हैं। ( असिद्धास्पद फलोत्प्रेक्षा) १३-अतिशयोक्ति दो०-जहँ अत्यंत सराहिबो अतिशयोक्ति सु कहंत । भेदक, संबंधा, चपल, अक्रम, रूप अत्यंत ॥ विवरण-जहाँ किसी की अतिशय सराहना करना मंजूर हो, उस उक्ति के कथन में अतिशयोक्ति होती है। उसके छः भेद हैं-(१) भेदकातिशयोक्ति, (२) संबंधातिशयोक्ति, (३) चप-

  • इस अलंकार को अँगरेजी में 'हाइपरबोला' ( Hyperbole )

और फारसी-उर्दू में 'मुबालगा' कहते हैं। । ų