पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/५३

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उल्लेख ४९ मानै कवींद्र सुरद्रुम सोरु गिरापति कै सब पंडित मानें। श्रावत देखिकै रामनरिंदको भाँतिनि भाँतिनि रूप बखाने पुनः-- जिनको रही भावना जैसी । प्रभुमूरति देखि तिन तैसी ॥ देखहिं भूप महा रनधीरा । मनहु बीररस धरे सरीरा ॥ डरे कुटिल नृप प्रभुहिं निहारी। मनहु भयानक भूरति भारी॥ रहे असुर छल जो नृप वेषा । तिन प्रभु प्रगट काल सम देखा। पुरवासिन देखे दोउ भाई । नरभूषन लोचनसुखदाई ॥ बिदुषन प्रभु बिराटमय दीसा । बहु मुख कर पगलोचन सीसा॥ जनक जाति अवलोकहिं कैसे । सजन सगे प्रिय लागहि जैसे ॥ सहित बिदेह बिलोकहिं रानी । सिसु सम प्रीति न जाय बखानी॥ योगिन परम तत्वमय भासा । सांत सुद्ध मन सहज प्रकासा ॥ हरिभगतन देखे दोउ भ्राता । इष्टदेव सम सब सुखदाता ।। रामहि चितव भाव जेहि सीया । सो सनेह सुख नहिं कथनीया ॥ जेहि बिधिरहा जाहि जस भाऊ । तेहि तस देख्यो कोसलराऊ । (२) एक ही व्यक्ति को एक ही व्यक्ति बहु विधि वर्णन करे । यथा- दो--साधुन को सुखदानि हैं दुर्जनगन दुखदानि । बैरिन बिक्रम हानिप्रद राम तिहारे पानि ।। सवैया-सत्य की वेर युधिष्ठिर हैं बल भीम है युद्ध धरा महँ गाजै। बान बिलास में जानो विजै नकुलै इव बाजिन की गति साजै । आगम जानिये की सहदेव लखे सव के मन भावते छाजै । पोषकता जग की हरि है लखि 'कूरमराम' नरिंद्र विराजै। कवित्त--सारमाला सत्य की बिचारमाला वेदन को, भारी भागमाला है भगीरथ नरेस की।