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*श्रीराम*

अलंकारचंद्रिका


अलंकार

किसी वाक्य के वर्णन करने का 'चामत्कारिक' ढंग 'अलंकार' कहलाता है। दूसरे शब्दों में यों कहिये कि जिस समग्री से किसी वाक्य में रोचकता वा चमत्कार आ जाय वह सामग्री 'अलंकार' कहलाती है।

जैसे गहने पहनने से किसी व्यक्ति का शरीर कुछ अधिक रोचक दीख पड़ता है, वैसे ही अलंकार से वाक्य की रोचकता बढ़ जाती है। 'अलंकार' काव्य का एक आवश्यक अंग है।

मुख्य 'अलंकार' तीन प्रकार के होते हैं—(१) शब्दालंकार, (२) अर्थालंकार और (३) उभयालंकार।

(१) जहाँ शब्दों में चमत्कार पाया जाय वहाँ शब्दालंकार कहा जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि यदि उन शब्दों को बदलकर उनके स्थान में उनके पर्यायवाची शब्द रख दिये जायँ तो वह चमत्कार न रहेगा।

(२) जहाँ अर्थ में चमत्कार पाया जाय वहाँ अर्थालंकार माना जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि वह चमत्कार निकालकर यदि उस वाक्य का केवल तात्पर्य कहा जाय तो वह वाक्य बिल्कुल सादा और अरोचक हो जायगा। जैसे कहना यह है कि "अमुक व्यक्ति बड़ा विद्वान् है।" तो इस वाक्य को सीधे यों न कहके कि "अमुक व्यक्ति बड़ा विद्वान् है," यों कहे कि