पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/४९

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रूपक ४५ नंदनंदन बूंदाबनचंद । यदुकुल नभ तिथि द्वितिय देवकी प्रगटे त्रिभुवन बंद ॥१॥ जठर कुहूते बहिर बारिनिधि दिसि मधुपुरी स्वछंद । बसुदेव संभु सीस धरि प्रान गोकुल आनंदकंद ॥२॥ ब्रज प्राची राका तिथि जसुमति सरस सरद रितु नंद । उडुगन सकल सखा संकर्षण तम दनुकुल जो निकंद ॥३॥ गोपी जन तह धरि चकोर गति निरख मेटि पल द्वंद। 'सूर' सुदेस कला षोडस परिपूरण परमानंद ॥४॥ सूचना-इस 'सांगरूपक' को अँगरेजी में सस्टैंड मेटेफर (Sus- taind metaphor) कहते हैं। सांग रूपक के पुनः दो प्रकार हैं-- (१) समस्तवस्तुविषयक और (२) एकदेशविवर्तित । १-समस्तवस्तुविषयक सांग रूपक के उदाहरण कई एक ऊपर लिख आये हैं । कुछ और लिखते हैं। यथा- १-उदित उदयगिरि मंच पर रघुबर बाल पतंग । बिकसे संत सरोज सब हरषे लोचन शृंग ।। नृपन केरि आसा निसि नासी । बचन नखत अवलीन प्रकासी ॥ मानी महिप कुमुद सकुचाने । कपटी भूप उलूक लुकाने ॥ भये बिसोक कोक मुनि देवा । वरहिं सुमन जनावहिं सेवा ।। २-राम नाम नरकेसरि कनककसिपु कलिकाल । जापक जन प्रहलाद जिमि पालहिं दलि सुरसाल ॥ ३- वर्षा ऋतु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास । रामनाम बर बरन जुग सावन भादौं मास ॥ २-एकदेशविवर्तित रूपक वह कहलाता है जिसमें कुछ अंगों का निरूपण किया जाता है और कुछ का नहीं । जैसे-