पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/३८

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३४ अलंकारचंद्रिका अंतर्हित रहेगी। इसलिये इनमें उपमेय और उपमान के लिये जो शब्द लिखे जायँगे वे केवल पर्यायमात्र होंगे। उन्हें यहीं समझ लेना चाहिये। उपमेयः वर्य प्रस्तुत उपमान = {अवर्य अप्रस्तुत ६--ललितोपमा दो०-जहँ समता को दुहुन की, लीलादिक पद होत । ताहि कहत ललितापमा, सकल कविन के गीत ॥ विवरण-जहाँ उपमेय और उपमान की समता जनाने के लिये सम, समान, लौं, इव, तुल्य इत्यादि पद न लाकर ऐसे पद लाये जाने हैं जिनसे उपमेय और उपमान में बराबरी, मुकावला, मित्रता, ईर्ष्या इत्यादि सूचक भाव प्रकट होता है उसे 'ललितोपमा' कहते हैं। दो-बहसत, निदरत, हँसत, अरु, छवि अनुहरत बखानि । सत्रु, मित्र, अरु होड़ कर, लीलादिक पद जानि विवरण-जहाँ, बहसत, हँसत, निदरत, छवि अनुहरत, शत्रु है, मित्र है, होड़ लगी है इत्यादि या इसी अर्थ के अन्य शब्द उपमेय और उपमान की वरावरी प्रकट करने के लिये आते हैं, वहा ललितोपमा समझना चाहिये। जैसे- साह तनै सरजा सिवा की सभा जा मधि है, मेरुवारी सुर की सभा को निदरति है। 'भूषन' भनत जाके एक एक सिखर ते, केते धौं नदी नद की रेल उतरति है।