पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/३०

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अलंकारचंद्रिका ३-गौतम नारी तरि गई, रही जो अघ सो पूरि। पाय सजीवन मूरि ली, प्रभु पद पंकज धूरि ।। ४-वाह भुजंग सी पल्लव से कर अाँगुरी पै नख हीरक हार से i त्यों लछिराम घटान से रंग प्रसा विहले मुकुताहन थार से । ये भ्रमरावलि ली जुलफै युग भौहें कमान सी आनन मार से । बालमयंक लौ भालथली रघुनाथ के लोचन खंजकुमार से ॥ ५-कुंद इंदु सम देह, उमारमन करुनायतन । ६-करिकर सम प्रभुभुज दसकंधर । इन उदाहरणों में साधारण धर्म का लोप किया गया है। इसी प्रकार और भी लुप्तोपमाओं में केवल नाम ही से उसकी परिभाषा जान लेनी चाहिये । ३--(उपमानलुप्ता के उदाहरण ) १-वाके से चंचल नयन, जग काहू के हैं न । २-सुंदर नंदकिसोर सो, जग में मिले न और । ३-लम्वन गम से राज समाज में राजत कौन महीप के बारे । ४-समर धीर नहिं जाय वखाना । तहि सम नहि प्रतिभटजग आना। ४--( उपमेयलुमा के उदाहरण ) १-चंचल हैं ज्यों मीन, अमनार पंकज सरिस । निरखि न होय अधीन, ऐसो नर नागर कवन ।। २-साँवरे गोरे घटा छटा से बिहर मिथिलेश की वागथली में। ५-(वाचकधर्मलुप्ता) जिसमें वाचक शब्द और साधारण धर्म का लोप किया जाय । जैसे- १-ईसप्रसाद असीस तुम्हारी। सब ग्मुतबधू देवसरि वारी। २-विधुबनी मृगसावकलोचनि ।