पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/१५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११
अनुप्रास

को फारसी तथा उर्दू में काफिया कहते हैं। भाषा काव्य में छः प्रकार के तुकांत हो सकते हैं—

१—सर्वांत्य-जैसे किसी सवैया वा कवित्त (मनहरण) के चारो तुकांत एक से होते हैं।

२—समांत्य विषमांत्य-अर्थात् पहले और तीसरे चरणों के तथा दूसरे और चौथे चरणों के तुकांत एक से हो; जैसे—

(क) जेहि सुमिरत सिधि होय, गननायक करिवर बदन।
करहु अनुग्रह सोय, बुद्धिरासि सुभगुनसदन॥
(ख) मूक होहिं बाचालु, पंगु चढ़ैं गिरिवर गहन।
जासु कृपा सु दयालु, द्रबहु सकल कलिमलदहन॥
(ग) कुन्द इन्दु सम देह, उमारमन करुनाअयन।
जाहि दीन पर नेह, करुहु कृपा मर्दनमयन॥

३—लमांन्य—जिसमें केवल दूसरे और चौथे चरणों के तुकान्त समान हों। जैसे दोहे का होता है।

दो॰—एक छत्र इक मुकुट मनि, सब बरनन पर जोउ।
तुलसी रघुवर नाम के, बरन बिराजत दोउ॥
या अनुगगी चित्त की, गति समुझै नहिं कोय।
ज्यों ज्यों भीजै स्याम रँग, त्यों त्यों उज्जल होय॥

४—विषमांत्य—जिसमें पहले चरण और तीसरे चरणों के तुकान्त एक-से हों। जैसे—

सो॰—सुनि केवट के बैन, प्रेम लपेटे अटपटे।
बिहँसे करुना ऐन, चितै जानकी लखन तन॥
धरनि धरहु जनधीर, कह बिरंचि हरि पद सुमिरि।
जानत जन की पीर, प्रभु भंजहिं दारुन विपति॥

५—सम विषमांत्य—जिसमें पहले और दूसरे तथा तीसरे- चौथे चरणों के तुकांत एक-से हो। जैसे—