१०४ अलंकारचंद्रिका यहाँ 'रामजी का राज्याभिषेक था सो तो न हुआ उलटा बनवास हुआ' यह प्रस्तुत वृत्तांत है, सो नहीं कहा, उसका प्रतिविबमात्र कहा गया। २-सोहि दूषन देवहिं देहीं । विरचत हंस काक किय जेहीं । ३-यहि पापिनिहिं सूझि का परेऊ । छाइ भवन पर पावक धरेऊ। ४-दो०-सुनिय सुधा देखिय गरल सब करतूति कराल । जहँ तहँ काक उलूक वक मानस सकृत मराल । 'रामराज्य' की चर्चा केवल सुनने में आई, देखने में न आई, यह कहना था, सो न कहकर यों कहा । ५- मेरी सीख न सुनति सखि उलटे उठति रिसाय । सोयो चाहति नींद भरि सेज अँगार बिछाय ॥ ६-तव न सीख मानी अली कियो विचार न कोय । चाखो चाहति अमृत फल विष को बीजा बोय ॥ ७-हे 'रघुनाथ' कहा कहिये कहते कछु बात नहीं बनि अावें । देखति हो इनकी मति को ऋतु पावस बीति गये घर छावै ॥ ३४-अर्थान्तरन्यास अर्थान्तरन्यास दूसरे प्रकार का अर्थ रखना । दो०- साधारण कहिये बचन कछु अबलोकि सुभाय । ताको पुनि दृढ़ कीजिये प्रगट विसेप बनाय ॥ कै बिसेष ही दृढ़ करै साधारण कहि 'दास' । ताको नाम बखानहीं कहि अर्थान्तरन्यास ॥ विवरण-पहले कोई बात कही जाय, फिर यदि वह बात साधारण हो तो विशेष उदाहरण से और यदि विशेष हो तो
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