पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/१०१

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क्रम ९७ काटि गिरावत, फारत, तोरत, बांधत चारि खनौ न लगाये। शत्रुन के सिर और उरस्थल, पाद, भुजा नहिं जायें गनाये। इसमें यथाक्रम वर्णन किया गया है, चक्र देखो। खंग कटार गदा पाश उरस्थल काटि गिरावत फारत तोरत बाँधत सिर पाद भुजा यथाक्रम का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण जो हमें मिला है वह यह है- (छप्पय ) आनन बेनी नैन बैन पुनि दसन सुकटि गति । ससि सर्पिन मृग पिक अनार केहरि करनिनपति। पुरन खिभित जक तरुन पक्व बरपंच पुष्टबल । सरद पताल बिछोह बाग तरु गिरि बनकजल । निसि सन्निवेस सावक चुवत बिगस प्रसूती मद्भरत । पृथिराज भनत बंसी बजत अस बनिता बनबन फिरत । इसमें प्रथम चरण में ७ वस्तुओं के नाम लिये, पुनः दूसरे चरण में यथाक्रम उनके उपमान कहे । पुनः तीसरे, चौथे और पांचवें चरणों में यथाक्रम उन्हों उपमानों के विशेषण कहते चले गये हैं। इस अलंकार का इससे बढ़कर हमें कोई उदाहरण नहीं मिला। २-[भंगक्रम] जिसमें कथित वस्तुओं का क्रम भंग हो जाय-