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अयोध्या का इतिहास

है और कुछ दिन वहाँ रहे। एक दिन वसिष्ठ जी हंसकर बोले हम आपकी पहुनाई करना चाहते हैं, आप स्वीकार कीजिये। विश्वामित्र ने उत्तर दिया कि आप की मीठी बातों ही से पहुनाई हो चुकी। अब हमको आज्ञा दीजिये हम जायँ। परन्तु वसिष्ठ जी ने आग्रह किया और विश्वामित्र ठहर गये। तब वसिष्ठ ने अपनी होम धेनु को बुलाया और कहा, "हम इस राजा की पहुनाई करना चाहते हैं, तुम खाने पीने की अच्छी से अच्छी सामग्री से सेना समेत राजा को भोजन कराओ।" धेनु ने बात की बात में अच्छे से अच्छे भोजन पान सब इकट्ठा कर दिये। जब विश्वामित्र अपने मंत्री आदि के साथ खा पी कर तृप्त हो गये तो कहने लगे कि आप हमसे लाख गायें ले लीजिये और अपनी होमधेनु हमें दे डालिये। वसिष्ठ बोले हम करोड़ गायों के बदले अपनी धेनु न देंगे। इसीसे हमारे सारे काम चलते हैं। इस पर विश्वामित्र ने कहा हज़ार हाथी ले लीजिये, जितना चाहिये रत्न और सोना लीजिये, परन्तु वसिष्ठ ने न माना, और कहा, यही हमारा सर्वस्व है, यही हमारा जीवन प्राण है, हम इसे न देंगे। इस पर विश्वामित्र ने बरजोरी से गाय को पकड़ना चाहा परन्तु तत्‌क्षण बड़े बड़े योधा निकल आये और विश्वामित्र की सेना को मार भगाया। पीछे बहुत दिनों तक लड़ाई होती रही परन्तु वसिष्ठ के ब्रह्मवल ने विश्वामित्र के क्षत्रियबल को परास्त कर दिया। तब विश्वामित्र ने यह संकल्प किया कि ब्राह्मण बनना चाहिये और कठिन तपस्या करने चले गये। यहीं उनके पास त्रिशंकु पहुँचा जिसकी कथा ऊपर लिखी जा चुकी है। वाल्मीकीय रामायण में लिखा है कि त्रिशंकु को स्वर्ग पहुँचाकर विश्वामित्रजी पुष्कर चले गये। यहां उनको मेनका मिली जिसके फंद में पड़कर विश्वामित्र के शकुन्तला नाम की लड़की पैदा हुई जिसकी कथा संसार में प्रसिद्ध है। यहां से विश्वामित्र कौशिकी नदी के तट पर जाकर तपस्या करने लगे। यहां उनकी तपस्या बिगाड़ने को रम्भा नाम की अप्सरा