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अयोध्या का इतिहास


नहुष का वंश[१]

२४—चन्द्रवंश में यदि आगे राजगद्दी का अधिकारी किसी का वंश हुआ तो राजकुमार नहुष का वंश हुआ। इसका विवरण इस प्रकार है।

महाराज ययाति

नहुष के छः पुत्र हुये, यति, ययाति, संयाति, आयति, वियति और कृत। इनमें से राजकुमार यति ने देखा कि पुरुष राजलक्ष्मी में पड़कर माया में फंस जाता है । वह इस आत्मा का ज्ञान नहीं कर सकता। इस कारण उसने राज्य की इच्छा ही नहीं की। उसका विवाह सूर्यवंशी राजा ककुत्स्थ की कन्या गो से हुआ। राजकुमार संयाति ब्रह्म की उपासना में लगकर उसी में मग्न हो गया। ययाति का विवाह उशना (शुक्राचार्य) की कन्या देवयानी और असुर राजा वृषपर्वा की कन्या शर्मिष्टा से हुआ। देवयानी के गर्भ से यदु और तुर्वसु पैदा हुये और शर्मिष्ठा से द्रह्म्ु, अनु और पूरु पैदा हुये।

नहुष नाग

राजा नहुष स्वयं बड़े प्रतापी राजा हुये थे। उन्होंने सम्पूर्ण पृथ्वी का विजय किया।[२] उन्होंने अपने वाहुबल से इतना यश प्राप्त किया था कि देव लोगों ने भी इन्हें अपना प्रधान राजा बना कर इन्द्र का पद दे दिया। परन्तु इतना उच्चासन पाकर नहुष को मद आ गया। उन्होंने सोचा कि मैं इन्द्र के पद पर पहुँच गया हूँ, मैं इन्द्र की पत्नी शची का भी भोग करूँ। उसको लाने के लिये राजा नहुष पालकी पर सवार हो कर चले


  1. जयसवाल जाति के इतिहास से प्रकाशक की आज्ञा से उद्धृत।
  2. उसने दस्युनों को मारकर ऋषियों से भी कर लेना शुरू किया था और उसमें यशस्वी होकर उनसे अपनी सेवा भी कराई। देवताओं को जीतकर उसने उनका इन्द्रासन भी ले लिया। महाभारत आदिपर्व ७५।३०।