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उपसंहार (घ)।
रघु का दिग्विजय।

महाराज रघु बड़े प्रतापी राजा थे। उन्हीं से रघुवंश चला। उनके दिग्विजय का विवरण रघुवंश के चौथे सर्ग में दिया हुआ है। हम उसके पद्यात्मक अनुवाद से मुख्य अंश उद्धृत करते हैं।[१]

पूर्व देस जीतत नृप वीरा।
पहुँच्यो महासिन्धु के तीरा॥
घन ताली-बन बस जो ठामा।
चहुँ दिसि छवि पावत अति श्यामा॥
जर सन अरिहि उखारत जोई।
तेहि लखि सुह्म बेत सम होई॥
काँपत रिपुगन सीस झुकाई।
रघु-सरि सुन निज जाति बचाई॥
लड़त नाव चढ़ि वङ्गनिवासी।
तासु शक्ति निज भुजबल नासी॥
गंगा-स्रोत द्वीप महँ जाई।
गाड़े निज जयखंभ सुहाई॥

चलत बाँधि मग महँ गज-सेतू।
सेना सहित भानुकुल-केतू॥
कपिशा उतरि कलिंगहि आवा।
उत्कलनृप तेहि पंथ बतावा॥


  1. रघुवंश-भाषा, लाला सीताराम कृत, सर्ग ४।