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अयोध्या का इतिहास

"यह आप ही आया, आपही आया इसलिये साकेत नाम पड़ गया।"

संस्कृत में केत का अर्थ है बुलाना; आ उपसर्ग लगाने से अर्थ उलट जाता है[१] इसलिये आकेत का अर्थ हुआ, आप से आप आना और स लगा देने से अर्थ हुआ, "किसी के साथ आप से आप आना ।"

विशाखा नाम पड़ने का कारण यह है ।

प्रारम्भिक बौद्ध-कालीन इतिहास में विशाखा देवी का नाम बहुत प्रसिद्ध है । विशाखा राजगृह के एक धनी व्यापारी धनञ्जय की बेटी थी। धनञ्जय राजगृह से साकेत में आकर बसा था और उसने विशाखा का विवाह श्रावस्ती नगर के रहने वाले मृगर से पुत्र पूर्णवर्धन के साथ कर दिया था। विशाखा उन लोगों में से थी जिन्होंने सबसे पहिले बौद्धधर्म ग्रहण किया और उसने श्रावस्ती में बुद्धदेव के लिये एक मठ बनवाया था जिसका पूरा नाम प्राकृत में पुब्बाराम-मृगर-मातु-प्रासाद अर्थात् “पूर्वाराम, मृगर की माता का महल था ।” मृगर विशाखा का ससुर था परन्तु जब उसकी पुत्रबधू ने उसे बौद्धधर्मावलम्बी बना दिया और वह बुद्ध-भक्त हो गया तब से उसे अपनी माता कहता था। विशाखा ने अयोध्या में भी एक पूर्वाराम बनाया था। इसी के नाम पर कुछ दिन पीछे नगर भी विशाखा कहलाने लगा, जिसे चीनी यात्री हुआंगच्यांग पिसोकिया कहता है। अयोध्या के पूर्वाराम में बुद्ध १६ वर्ष रहे थे।

जब बुद्धदेव अयोध्या में रहते थे उन्हीं दिनों एक बार उन्होंने अपनी दतून फेंक दी थी जो जम गई और उस पेड़ को एक हजार वर्ष पीछे चीनी यात्री फाइहान और उसके भी ढाई सौ वर्ष पीछे हुआन च्वांग ने देखा था। इस दतून से उगे पेड़ का स्थान उस भ्रम का समूलोच्छेदन करता है जो कुछ पाश्चात्य विद्वानों ने साकेत और अयोध्या के एक होने में किया है।


  1. जैसे गम् =जाना; श्रा+गम्=पाना ।