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अयोध्या का इतिहास

दूर दूर के जैन आया करते हैं। नवम्बर से मार्च तक यात्री कुछ अधिक आते हैं।

वाल्मीकीय रामायण और पुराणों के अनुसार जो वंशावली हमने अध्याय ७ में दी है उसमें किसी तीर्थंकर के पिता का नाम नहीं है। भागवत पुराण, चतुर्थ स्कन्द में लिखा है कि स्वायम्भू मनु और शतरूपा के दो पुत्र थे, प्रियव्रत और उत्तानपाद। उत्तानपाद का लड़का ध्रुव था जिसकी कथा संसार में प्रसिद्ध है। उसकी राजधानी विठूर के पास थी।

प्रियव्रत के रथ-चक्र से सात लीकै बनी जो सात समुद्र हुये और उन्हीं समुद्रों के बीच में जम्बू सक्ष, कुश, शाल्मलि, क्रौञ्ज, शाक और पुष्कर द्वीप उत्पन्न हुये। राजा प्रियव्रत के सात बेटे थे[१] अग्नीध्र, उध्मजिह्व, यज्ञवाहु, हिरण्यरेता, घृतपृष्ठ, मेधातिथि और वीतिहोत्र और कन्या ऊर्जस्वती थी जो शुक्राचार्य को व्याही थी। वही ऊर्जस्वती राजा ययाति की रानी देवयानी की माँ थी।

प्रियव्रत के पीछे उनका बड़ा बेटा अग्नीन्ध्र जम्बूद्वीप का राजा हुआ। उसने एक अप्सरा के साथ विवाह किया जिससे नौ बेटे हुये, नामि [२], किंपुरुष, हरिवर्ष, इलावृत, रम्यक, हिरण्यमय, कुरुभद्राश्व और केतुमाल। नवों भाई पृथिवी के भिन्न-भिन्न भागों के राजा हुये जो उन्हीं के नाम से कहलाये। अमीन्ध्र के परलोक जाने पर नवों भाइयों ने मेरु की नौ कन्याओं से विवाह किया । बड़ी मेरुदेवी नाभि को ब्याही गई। मेरुदेवी के बहुत दिनों तक कोई लड़का न हुआ। तब नाभि भक्ति पूर्वक यज्ञ करने लगे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान् ने उन्हें दर्शन दिया और


  1. विष्णु पुराण में इनके दस पुत्र लिखे हैं, इनमें तीन योगपरायण हुये।
  2. विष्णुपुराण के अनुसार नाभि को दक्षिण भारत का राज मिला था।