पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/८७

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उपन्यास nu - "तो यचपन का विवाह विधवा बना देता है, क्यों?" जयनारायण ने ठरहे होकर समझाने हुए फहा-"देखो, जब पेड़ छोटा होता है, तो पढ़े यय से उसकी रक्षा करनी पड़ती है, बाद लगानी पड़ती है। जरा-सी थाँधी, पानी, धूप कारण ही वह नष्ट होजाता है। उसके बढ़ने का कुछ भी भरोसा नहीं होता। धन्त ने जब बढ़कर रद हो जाता है, उसके सय श्रद पुष्ट हो जाते है तो यही चदी थांधी के कोकों में नहीं गिरता । यही हाल भादमी फा भी है। जब बालक छोटा होता है, ने जरा-सी सदी-गनी-हवा का उस पर असर होता है, अनेक रोग पीछे लगे रहते हैं, पर ज्यों-ज्यों यड़ा होने लगता है-उसके सब अा सबल हो जाते हैं, और वह फन बीमार पड़ते हैं। इसी से वहता हूँ, कि बाल-विवाह से विधवायें अधिक होती हैं, और यह तो साफ यात है कि मैं जो नरो का व्याह ही श्रमी न करता, तो वह विधवा कैसे होती?" स्त्री ने आंसू पोंचकर कहा-"अय तो सांप चला गया- लकीर पीटने में क्या है ? जो होगया, सो होगया । इन बातों में क्या धरा है ? भगवान की यही मज़ी थी।" जयनारायण ने कहा-"फिर भगवान् को दोप दिया? अब भी हो सकता है, यह दुख दूर अव भी हो सकता है। इसका भी उपाय है।" स्त्री ने घायन्त विस्मय थौर उत्करला से कहा-"क्या उपाय है ? नरो का दुख दूर हो सकता है कैसे हो सकता है ?"