उपन्यास १३ "वे चाबू साहव न दे गये थे?" बालिका चकित-सी खड़ी रह गई। बुदिया ने युवक की प्रशंसा के गीत गाने प्रारम्भ कर दिये । बालिका ने पूजा-"क्या दे गये। "दस रुपये साल-मर का पेशगी।" "तुमने लिये क्यों?" बुदिया ने विस्मित होकर वालिका की तरफ देखा उसने -"इसमें क्या बुरा किया ?" बालिका वहाँ न ठहरकर ऊपर चलदी। उसकी मुट्ठी में वह दो रुपये थे। उन्हें खूब ज़ोर से मुट्ठी में दवाकर, वह धरती में खोटकर रोने लगी। मानो उसका हृदय फटा पड़ता था। आँसुमों का वेग नदी की भांति वह चला! मोह, वह कौन है ? इतना सुन्दर-शरीर और मन दोनों से ऐसा दावा-उसने मेरा जीवन और इज्जत दोनों की रक्षा की। एक ही झोंक में वह बहुत-सी बातें सोचने लगी। वह घब विलकुल अवोध बची तो थी-नही, १६ वर्ष की युवती यी। वह अपनी परिस्थिति और दयनीय दशा को समझती थीं। जो-जो बातें इस समय उसके मस्तिष्क में उमड़ रही थीं, उन्होंने, उसे अधिक रोने न दिया। वह श्राकर बैठ गई और सोधने जगी। वह चिर-विस्मृत विवाह का खेल, वह अति दूर का स्वसराजपामन, वह माता का प्यार और मृत्यु, वह विपत्ति के समुद्र में मसहाय इवना, और इस एक युवक के द्वारा एकाएक
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