पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/५२

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42 अमर अभिलाषा "कमीज़ को जाने दो।" "उस पर कैसी बीती "अव और क्या श्राव है " "किरायेवाली" "उसका तो साल-भर का चुकता होगया।" "मगर राना साहब ?" युवक चमक गया। अरे हाँ, वह हरामखोर राजा उसे कष्ट दे सकता है। युवक तीर की भाँति वालिका के घर की और लपका, पर इस जल्दी में अपने बालों को सँवारना और जरा. वेश-भूपा की विवेचना करना वह भूला नहीं । क्यों? अव इस बात का हम क्या जवाव दें। उसकी इच्छा । सातवाँ परिच्छेद रूपये लेकर बालिका नीचे किरायेवाली के पास गई। वह डर रही थी। उसने डरते-डरते वे रुपये बुढ़िया के सामने रखे। परन्तु उसने देखा-बुढ़िया का रङ्ग उन सभी बदला हुआ है। बुढ़िया ने हँसकर कहा-"परी बावली, किराया वो मुझे मिल भी गया!" "कहाँ से.मिला?"