उपन्यास - "दूल्हा क्यों ? यह यनाऊँगी-अभी तू कहती थी न, फि मैं मर्द बन जाऊँगी-शारिर तुझे भी तो एफ मर्द चाहिये न?" चम्पा ने भगवती को धपा देफर फहा-"चल परे हो, कितायों में परफर तैने यही लगन ली है! "परदन क्या पुरे हैं।" "बड़े अच्छे" फाटफर चपा चुप होगई, और कुछ व्हरकर भगवती योली-“जो तुझे भी इन फिनावों का पदना सिला ?" चम्मा ने कद कौतुफ से कहा-"मुझे पैसे सिसावेगी?- घऔर किनार ही मुझे फोन लाफर देगा ?" "किताय तो यहीं गलीनाली विफती फिरती है यह देश, फल तीन पैसे में यह मोल ली है-यही अच्छी किताय है।" "तीन पैसे में इतनी बड़ी किनार ? वाह भई; फल स्कूल से रानू धार माने की जो किताय काया-वह तो इससे चौथाई भी नहीं । श्रद्धा, इस किताब में है क्या ।" "तोता-मैना का हिस्सा।" "तोता-मैना की सूरत भी यन रही है। किताय में क्या बात है?" "एक सोता और मैना यात फरने लगे। तोवा वोला-कि औरत की जास बेईमान होती है, चाहे जितनी सम्दानकर रक्खी नाय, यिना विगढ़े नहीं रहती। मैना ने कहा-मर्द के बराबर कोई येपीर नहीं। औरत चाहे मर जाय, पर मर्द किसी
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