उपन्यास ४३ यातें यहुत कम धाती है; पर होने पर और घासों पर वो येवार की तारमी चलती ही रहती है। युवफ जल्दी से चल दिया । लरकी धन्यवाद भी न दे सकी, नाम भी न पए सफी, फिर फनी मिलोगे या नहीं, यह भीन पच सकी। परन्तु यह सय यात जानने को वह प्याकुल होगई। क्यों? य इस 'क्यों' का अवाय कौन दे? हमें तो पिस्से का सिलसिला जारी रखना है। युवक नीचे जाकर मकानवाली डायन से मिला। उसने टूटते ही लदकी को गाली देनी शुरू की। लड़की में घनेक एवं गिनाये, पर सय का कारण फिराया न देना था। युवक ने पूछा, किठना फिराया है ? पुदिया बोली-पूरा देद रसया। दो महीने फा चढ़ गया है। युवक ने १०) फा नोट निकालफर दिया के हाय पर घर दिया, यार कहा-"यह एक साल का पेशगी फिराया को-कभी उसे फसी यात न फहना, सयरदार !" युदिया ने धुंधती भा पांडकर नोट को देखा, और फौरन् उसका स्वर यदता । लदकी गक फी सरह सीधी, यदी सुन्दर और सुशीला है। नाम धरनेवाले की भी युदिया ने तारीफ कर लो। युवक बाजार गया, और शीघ्र ही लौटकर उसने एक यान कपड़ा लड़की के ग्रागे ला-धरा-२) नकद घटाई पर घर दिये, और कहा-"यह पेशगी सिलाई लो-एक कमीज़ राम को घर मिल नाय।
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