३८ अमर अमिलाषा राजा साहब ने पर्ची न छूकर उसका बदा हुया हाथ पकड़ लिया। और वोले-"तू कौन है ?" वालिका क्या नवाव देवी? उसने धीरे से हाथ खींच लिया। वह वहाँ से जाने को उद्यत हुई। पर रुपये पाने से ही उसकी मजदूरी मिलेगी। उसने धरती पर गिरी हुई पची उठाकर फिर राना की ओर हाथ बढ़ाकर कहा-"हुजूर ! इसके रुपये मालिकिनजी ने मंगवाये हैं।" राजा साहब उस कुम्हलाये मुख-कमल का रस पी रहे थे। वह अति सुन्दर दरिद्र बाला-भानो प्रातःकाल की पीव-प्रविमा थी । मैले और फटे वस्त्रों में वह विपत्ति की आग में सपाया तपस्वी शरीर उस विलासी, घृणित, काम के कीड़े के मन में वासना की वरंग उछाल रहा था। उसने दुवारा लड़की की विनीत बात सुनकर कहा-"तू है कौन ?" लड़की ने जवाब दिया-"सरकार, मैं सीने का काम करती हूँ।" "दी की लड़की है ?" "नहीं" "तब ?" "मैं सोकर ही दिन काटती हूँ।" राजा साहब ने . आगे बढ़कर पूछा-"तेरा कोई और अपना है? "नहीं सरकार "
पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/३८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।