पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/३४३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उपन्यास को प्रदान कर दो। इससे अधिक मालती स्वयं प्रात कर लेगी।" कुमुद ने कहा-"मालती की इसा हमें मालूम है। सुशीला ने उसे सब बातें कह दी है।" प्रकाश ने कहा-"मुद्र, पया तुम मेरा विधान अपने से यिस्कुल विपरीत किया चाहती हो?" "हाँ, प्रत्येक पुरुष का विधान पृथक ही होता है।" कुछ देर चुप रहकर प्रकाश ने श्यामापाचू की ओर देखा, फिर कुमुद से कहा-"कुमुद, मुझे मालती की सेवा करना स्वीकार है। मैंने मालती को अपना शरीर दिया । पर एक शर्त है । इस विवाह में कुछ भी धूम-धाम न होगी।" "कुछ भी नहीं, यह विवाह पान ही सम्पन्न होनायगा।" "आज ही कैसे" "हरो, सर ठीक हुआ जाता है ।" कुमुद ने श्यामावावू से परामा किया। मालती वहाँ मे उठकर भागना चाहती थी, पर सुशीला उसे पकड़ हुए थी। योदी ही देर में सब मंगल-पदार्य एकत्रित कर दिये थे । मालती और प्रकाश दोनों ने स्नान किया, यज्ञ की वेदी पर बैठे, और स्वयं ही धर्म को साक्षी देकर अपने को पति-पत्नी रूप में स्थापित कर दिया। उस भानन्द की याद में सुशीला की आँसुक्षों की धारा को कोई भी न देख सका।